गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना उल्टा हो गया है। 'दस्तपनाह' का अर्थ चिमटा है। असली फारसी- में चिमटेको दस्तपनाह नहीं कहते, उसका यह नाम हिन्दुस्तानमें तैयार हुआ, इससे किसीकी क्या हानि हुई ? पचासों अंगरेजी शब्द ऐसे हैं, जिनका संस्कृतमें ठीक वह अर्थ नहीं है, जो अब किया जाता है। प्रस्ताव, अनुमोदन, समर्थन आदि शब्दोंका आजकल जो अर्थ लिया जाता है, क्या संस्कृतमें उनका ठीक वही अर्थ है ' 'ताजीरातेहिन्द' इण्डियन पिनल-कोडका तरजमा किया गया है। फारसी कायदेसे इसका ठीक वही अर्थ नहीं है, जो इण्डियन पिनल-कोडका है। 'ताजीरातेहिन्द' में अनुवादकर्त्ताने पचासों अंगरेजी कानूनी शब्दोंकी जगह अरबी शब्द रखे हैं। जिस अर्थके लिये वह रखे गये हैं, अरबीमें उनका ठोक अर्थ वैसा ही नहीं है। पर अदालती भाषामें उनका अर्थ ठीक समझा जाता है। सारांश यह कि आवश्यकताके अनुसार नये शब्द गढ़ने पड़ते हैं। 'प्रेम फसफसाया' हिन्दी बंगबासीकी टकमालमें ढला है और “शौक चर्राया” शहरो आवारा लोगोंकी बोलचाल है। ऐसे शब्दों के छोड़ देनेके प्रस्तावका दास आत्माराम भी अनुमोदन करता है । संस्कृत भाषाके अनुसार दूसरी भाषाके शब्दों में 'षत्त्व' 'णत्त्व' लगाना बुरा मालूम होता है। 'पोसृर मासूर' की जगह 'पोष्ट माष्टर' और “गवर्नमेन्ट” की जगह “गवर्नमेण्ट" लिखनेसे जी तो बहुत खराब होता है, पर कहीं-कहीं टाइप उसी ढङ्गके बने हुए हैं। इससे लिखनेको चाहे जो लिखो कम्पोजीटर टाइपके अनुसार कर लेता है। बंगालमें यह दोष विशेष है, 'भारतमित्र' भी इससे बचा हुआ नहीं है। अपने लेखके अन्तमें द्विवेदीजी लिखते हैं-"दृषित भाषाके उदाहरण में ( उदाहरणों चाहिये ) जिनके वाक्य इस लेग्वमें उद्धृत किये गये हैं, उनसे हम पुनर्वार प्राथना करते हैं (“जिन” के आगे “सज्जनों" या "महोदयों" अवश्य आना चाहिये था, खाली “जिन" लिखनेसे शिष्टता- [ ४८६ ।
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