पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४९९

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गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालो चाहिये । (२) शिक्षा लेनी चाहिये। (३) जड़ी बूटियां इकट्ठा करते दिल्लोवाले ऐसा क्यों लिखते हैं ? इसका उत्तर यह है कि वह इ तरह बोलते हैं। जो बोलते हैं, वह लिखते हैं, इसी प्रकार लखनऊब लिखते-(१) लेखनी उठाना चाहिये। शिक्षा लेना होगी। (३) उ बूटियां इकट्ठा करते थे। तीसरे वाक्यमें यदि कर्ता स्त्रीलिङ्ग होता तो दिल्लीवाले यों लिखते (३) जड़ी बूटियों इकट्ठी करती थीं। लखनऊवाले लिखते-ज बूटिय इकट्ठा करती थीं। ____ लखनऊवाले भी दिल्लीवालोंकी भांति जो बोलते हैं, वही लिखते कुछ जिद्द करके वैसा नहीं लिखते। दिल्लीवाले बराबर अपनीही चा पर लिखते हैं, लखनऊवालोंकी चालपर कभी नहीं लिखते। पर लखन वाले कभी-कभी 'करना होगी' और 'करनी होगी' दोनों लिखते पञ्जाबी तथा दूसरे देशोंके लोग दिल्लीवालोंकी पैरवी करते हैं, लखन वालोंकी नहीं। पर अवध और युक्तप्रदेशमें लखनऊवालोंकी पै अधिक होती है। जनवरी मासके मखजनसे हम दिल्ली निवासी श् सुलउलमा मौलाना जकाउल्लहके एक लेखकी थोड़ी इबारत नकल व हैं-"चंद नौजवान यूनिवर्सिटियोंके ग्रंजवेट हैं, जो अपनी मादरी जुबा शेर कहना और नस्र लिखनी जानते हैं। इन नौजवानोंकी काबिल और ईस्तैदाद काबिले तारोफ है कि वह अंगरेजी इल्मेअदब भी जा हैं और इसके साथ उनको अपनी जुबानमें नजमोना लिखनी भी अ है। मगर अफसोस यह है कि वह अपनी काबिलोयत पर दूर लगाकर देखते हैं। अगर वह मक्खीके बराबर हो तो भैसेके बर नजर आती है। उनको अपनी काबिलीयत और लियाकत पर नखवत है कि वह उन बुजुर्गोंको जिनकी सारी उम्र अपनी जुबान तसनीफों-तालीफोंकी तहकीकमें गुजरी है तकवीमेपारोना जानते हैं।" [ ४८२ ]