गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना जिसमें एक शब्द भी गलत न होता। पर ऐसा करनेसे शायद कोई यह न जान सकता कि आप बंगलामें भी भूल निकाल सकते हैं । अथवा बंगलामें भी निर्दोप नमूनोंका अकाल है ! अच्छा अब अपने इस उदाहरणका शब्दार्थ सुन चलिये- _ “राखालकी स्त्री मृत्यु शय्या पर। डाकर कविराज विदा ले चुके हैं अवशिष्ट परमायु अधिकसे अधिक २-३ घण्टे मात्र । रोते हुए आत्मीय स्वजनोंने मुमूर्षु को घेर रखा है। मुमूर्षु आंख खोलकर सबकी ओर देख देखकर दृष्टि फिरा लेता था। राखालके पिताने परलोकयात्रीका मनोभाव समझकर पुत्रको बुलाकर कहा, 'राखाल, हम बाहर जाते हैं तुम यहीं जरा ठहरो।' सब बाहर गये, राखाल स्त्रीके सिरहाने बैठा।" ___ यह उदाहरण "प्रवासी” नामक बङ्गला मासिक पत्रके गत श्रावण मासके नम्बरसे लिया गया है ; उसका पूरा अनुवाद सरस्वतीक उसी नम्बरमें छपा है जिसमें यह उदाहरण है। सरस्वतीके लेखकने इस टुकड़ेका जो अनुवाद किया है वह इस तरह है- ___ “बाबू गोपालदासकी पत्नी श्यामा शय्यापर पड़ी कण्ठस्थप्राण हो रही हैं। डाकर, हकीम, वैद्य आदि सबने साफ जवाब दे दिया है। अब केवल दो-तीन घण्टेकी वह और मेहमान है। कुटुम्ब और परिजनके लोग उस आसन्न मृत्युशय्याको चारों ओरसे धेरै रो रहे हैं। मुमूर्षु क्षण-क्षणमें नेत्र खोलकर सबकी ओर देखती और दृष्टिं फेर लेती है। गोपालदासके दूरदर्शी पिता उस कण्ठस्थप्राणकी ऐसी आकुल अवस्था देखकर उसके मनोभिलाषको समझ गये। उसी समय पुत्र गोपाल- दासको बुलाकर उन्होंने कहा-'गोपाल, हम लोग बाहर जाते हैं, तुम थोड़ी देर यहां बैठो।' इतना कहकर सब लोग बाहर चले गये।" यह अनुवाद असलसे बहुत बढ़ गया है। कसकर लिखा जाय तो दो तिहाई रह जाय । पर द्विवेदीजीके व्याकरणकी रूसे अनुवाद होनेपर [ ४७२ ]
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