गुप्त-निबन्धावली मालोचना-प्रत्यालोचना शिवप्रसादको आप कुछ गांठते ही नहीं हैं। गदाधरसिंह, राधाचरण गोस्वामी, काशीनाथ खत्री आदिको भी पकड़कर खूब झंझोटा है। अब उदाहरण दिया जाय, तो किसके लेखसे १ लाचार उईके लेखकोंकी सनद लेकर द्विवेदीजीकी सेवामें उपस्थित होना पड़ा। कुछ और पंक्तियाँ द्विवेदीजीने राजा शिवप्रसादके इतिहास तिमिर- नाशकसे उद्धृत की हैं। उनमें भी वही 'उसने' और 'वह' की तकरार है। अन्तमें द्विवेदीजीने राजा साहबके मामलेमें यह हुक्म दिया है- “कर्तृ पदोंका ऐसा समूल संहार शायद ही और किसी लेखककी इबारतमें पाया जाय। यदि इस तरहकी इबारत अच्छे मुहाविरेमें गिनी जाय, तो नमः शब्दशास्त्राय ।” अजी महाराज, आप जानते ही नहीं कि कर्तृपद कहां लाये जाते हैं और कहाँ-कहाँ छोड़ दिये जाते हैं। आपकी आदत है, जिस बातको नहीं जानते उसीमें फजीलत दिखाते हैं। आपको यह भी मालूम नहीं कि मुहावरेका अर्थ क्या है। यदि जानते तो कभी न लिखते कि इस तरहकी इबारत मुहाविरेमें गिनी जाय-। इबारत मुहावरेमें कैसे गिनी जाती है, यह किसीसे आप पूछ तो लीजिये। लोग आपकी समझदारीकी हंसी उड़ा रहे हैं। कहिये अनस्थिरताकी क्या दशा है ? वह व्याकरणसे सिद्ध हुई कि नहीं ? अच्छा और एक सप्ताहकी मोहलत। पर 'मुहावरे'का अर्थ भी पूछ रखना। द्विवेदीजीमें एक विशेष गुण है । अबतक प्रकृतिने इस गुणसे हिन्दी सुलेखकोंको वञ्चितही रखा था। वह गुण यह है कि जहांतक हो सकता है, आप हिन्दीके लेखकोंके विज्ञापनोंकी भूल पकड़ते हैं। विज्ञा-
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