भाषाकी अनस्थिरता सर्वमान्य व्याकरण अब तक नहीं बना। ( है महजूफ) इसका फल यह हुआ है कि पचास वर्षकी पुरानी भाषा आज कलकी भाषासे नहीं मिलती। यहां तक कि वर्तमान समयमें भी ( अर्थात् इस समय भी) एकही वाक्यको एक लेखक एक तरह लिखता है, दूसरा-दूसरी तरह, तीसरा तीसरी तरह । (चौथा चौथी, पांचवां पांचवीं, दूर तक समझते चले जाइये) एक अखबारकी भाषा दुसरेकी भाषासे नहीं मिलती और दूसरेकी तीसरेकी भाषासे। इससे क्या हुआ कि भाषाको अनस्थिरता प्राप्त हो गई है।" ईश्वरका धन्यवाद है कि “अनस्थिरता” आ गई है न कहा। खैर, अब द्विवेदीजी अनस्थिरताको व्याकरणसे सिद्ध करें और अपने राम उनके लिये एक और लेख तैयार करें। द्विवेदीजी घबराते हैं कि हिन्दी भाषामें एक भी सर्वमान्य व्याकरण अभी तक नहीं बना। इससे पचास सालकी पुरानी भाषा आजकलकी भाषासे नहीं मिलती तथा एक अखबारकी हिन्दी दूसरेकी हिन्दीसे नहीं मिलती। इससे बड़े दुःखके साथ आप फरमाते हैं - "इससे क्या हुआ है कि भाषाको अनस्थिरता प्राप्त हो गई है। और बहुत सम्भव है कि यदि यही दशा बनी रही तो आजसे सौ वर्ष बादके लोग आजकलकी भाषाके बहुतसे वाक्योंको न समझ सकेंगे।" ___ श्रीमानकी यह घबराहट उस देहातनको घबराहटसे कम नहीं है, जो एक दिन शहरमें सूत बदलाने चली गई थी। वहाँ जाकर उसने देखा कि पचासों गाड़ियां रूईसे भरी सामनेसे आ रही हैं। देखकर बेचारीको ज्वर आ गया । कांप कर गिर गई और कहने लगी कि हाय- [ ४३९ ]
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