हिन्दी-अखबार पत्रिका निकली, जिसका नाम उस गांवके नामपर “अमृतबाजार पत्रिका” पड़ा। ____ भारतमित्रसे आठ साल पहले अमृतबाजार पत्रिकाका जन्म हुआ। उस समय कोई भी देशी पत्र इतनी बात कहनेका मकदूर भी न रखता था कि सरकारके सामने अपने स्वत्वोंकी कुछ वात तक भी कह सके । इसीसे उक्त पत्रिकाके निकलनेसे हाकिमोंमें बड़ी हलचल पड़ी। जब पत्रिकाकी उमर चार महीनेको थी तो उसपर मानहानिको नालिश हो गई। उसको सतरहवीं संख्यामें एक लेख निकला था, उसीपर मालिक, एडिटर, प्रिण्टर और गांवका एक आदमी, अभियुक्त हुए। मुकद्दमा जेसोर जिलेके मजिस्ट्रेट मनरो और जण्ट मजिस्ट्रट ओकिनलीकी अदालतमें चला। आठ महीने मुकद्दमा चलता रहा । बङ्गाल गवनमेण्टने भी इस मुकद्दमेकी ओर बड़ा ध्यान रखा। स्वर्गीय वाबू मनोमोहन घोष पत्रिकाकी ओरसे पैरवी करते थे। प्रिण्टर और लेखकको छः महीने और एक सालकी जेल हुई। पर मालिक किसी प्रकार बच निकला। जिलेके हाकिमोंकी जबरदस्ती और मलेरिया ज्वरकी बढ़तीके कारण उक्त पत्रिकाके मालिकको अपना गांव छोड़कर कलकत्ते आना पड़ा। उसके पास केवल १००) थे, जो २५) सैकड़े सूदपर एक पड़ोसीसे लिये थे। तीन महीनेतक वह कुछ न कर सका। पत्रिका बन्द रही। पीछे फिर जारी हुई और इसमें कुछ पोलिटिकल कारटून निकले, जो देशी अखबारों में पहली और नई चीज थे। इससे इसका बड़ा नाम हुआ। पीछे बड़ोदानरेश मल्हार राव गायकवाड़ पर रजीडण्टको विष देनेकी चेष्टा करनेका अभियोग चला। उस समय पत्रिकाने अच्छा आन्दोलन किया। बङ्गलाका पत्र होनेपर भी उसने कई लेख अंगरेजीमें प्रकाशित किये। तब पत्रिका बङ्गला और अंगरेजीमें निकलती थी। इतने में लार्ड लिटनने अपना प्रेस एक भारतवर्षमें जारी [ ४२३ ।
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