पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४३५

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास % 3D ७ मई सन् १८६६ ई० से भारतमित्रका आकार और भी बड़ा होकर डबल सुपर रायल हुआ था। उस आकार में १८६७ के अन्ततक छपता रहा। दैनिक भारतमित्र १८६७ ई० में छोटे साइज पर भारतमित्र दैनिक किया गया। साप्ताहिक पत्र अपने असली साइजपर अलग निकलता रहा। पर कई महीने चल कर वन्द होगया। बहुत लोगोंको इससे बड़ा दुःख हुआ। कितने ही उत्साही सज्जनोंकी प्रेरणासे जनवरी सन् १८६८ ई० से रायल चार वरकपर भारतमित्र फिर दैनिक हुआ। मूल्य १२) साल रखा गया, पर एक वर्ष चल कर फिर बन्द करना पड़ा। ___ अन्तको जनवरी सन् १८६६ ई० से इसका आकार और भी बड़ा किया गया, जो इसका वर्तमान आकार है। और मूल्य घटाकर केवल २) वार्षिक रखा गया। उसी चालपर वह पांच सालसे चलता है। इन पांच वर्षों की बात बहुत ताजा है। इससे उसपर किसी प्रकारकी आलोचनाकी जरूरत नहीं। उद्देश्य और सम्पादक भारतमित्रका जन्म कलकत्तेमें ऐसे समयपर हुआ कि जब हिन्दीकी यहां कुछ भी चर्चा न थी और न हिन्दी जाननेवाले लोग ही थे। अखबारोंकी चर्चा भी न थी। दो चार आदमी एक आध बङ्गला या अगरेजी अखबार पढ़ा करते। उस समय बङ्ग-भाषा और अगरेजी दोनोंहीमें अखबारोंकी ऐसी बहुतायत न थी। भारतमित्रके चलाने- वालोंने बड़ी कठिनाईसे इसके सौ पचास ग्राहक कलकत्ते में खड़े किये थे। किन्तु यह लोग पत्र लेनेपर भी उसके पढ़ने में असमर्थ थे। कितनेही लोग तो इतने अनभिज्ञ थे कि वह सब कालमोंकी भाषाको मिलाकर एक साथ पढ़ते थे। जब कुछ समझमें न आता तो कहते कि वह क्या लिखा है, कुछ मतलब ही नहीं समझमें आता। [ ४१८ ।