पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४३०

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हिन्दी-अखबार लेख लिखे गये हैं, जिनमें इस बातपर दुःख प्रगट किया गया है कि जो लोग मिडिल पास न करेंगे, उनको पश्चिमोत्तर प्रदेशकी गवर्नमेण्ट १०) मासिकसे अधिककी नौकरी न देगी। उस समय अखबारवालोंको यह बात बहुत चुभी थी। अब देखते हैं कि मिडिल पासकी कदर भी गई। इन्ट्रेन्स मिडिल हो गया। और कई वर्ष २ फरवरी सन् १८८८ ईस्वीके पत्रमें हवड़ेसे सियालदह तक एक सीधी चौड़ी सड़क निकलनेकी कल्पनाकी बात है। वही सड़क आज- कल कलकत्तके बड़ेबाजारकी प्रधान सड़क और उसकी शोभा बढ़ानेवाली हरिसनरोड है। गोरक्षाकी चर्चा इस सालकी संख्याओं में भी बहुत है। कांग्रसपर भी कई लेख उक्त सालके पत्रोंमें हैं । अंगरेजी अखबार- वाले आरम्भमें कांग्रसको बागी कहा करते, उन्हींका उत्तर इन लेखोंमें है। इस सालके अन्तके नम्बरोंमें बम्बईके कमिश्नर क्राफर्डके रिशवतवाले मुकद्दमेकी बहुत कुछ चर्चा है। जनवरी सन् १८८६ में प्रयागकी चौथी कांग्रसके लेख छपे हैं। उन दिनों एक बार ग्राहकोंकी कमीसे राजा रामपालसिंहजीका मन अपने "हिन्दोस्थान" पत्रको बन्द करनेका हुआ था, उसके लिये भी भारतमित्रने बड़ी तलमलाहट दिखाई थी। १८८६ ई० की बड़ी घटना काश्मीर-नरेश महाराज प्रतापसिंहको अधिकारच्युत करना है। इसपर भी भारतमित्रमें बहुत कुछ लिखा- पढ़ा गया है। इसी विषयको लेकर लाहोरके कोहेनूर और अखबारे- आमकी लड़ाई हो गई थी, उसकी बात भी कही है। फिर अमृतबाजार पत्रिकाके काश्मीरके भेदोंकी एक गुप्त सरकारी चिट्ठी प्रकाश कर देनेपर सरकारने जो सिक्रेट बिल बनाया, उसपर भी बहुत कुछ लिखा-पढ़ा गया है। सालके अन्तमें प्रिन्स अलवर्ट विक्टरके भारतवर्षमें पधारनेके विषयके लेख हैं। [ ४१३ ]