गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास लिखनेकी चेष्टा की है पर ठीक हो नहीं सका। “फिरती है" की जगह "फिरे” लिखा है तथा अच्छा लिखा है। आगे वसन्त ऋतुका वर्णन है, उसका भी नमूना देखिये- "फागुनके दिन बीत चले अब ऋतु वसन्त आई। बदला समां चली झोंकेसे रूखी पुरवाई ।। गर्मीके आगम दिखलाये रात लगी घटने । कुहू कुहू कोयल पेड़ोंपर बैठ लगी रटने ।। पक्के धान पान पियराने आम भी बौराने । हुइ पतझार, लगे कोपलमें पत्ते फिर आने ॥" पकेको 'पक्के' लिखना पड़ा है और 'भी' भारी हो गई है। इस प्रकारकी बहुतसी कठिनाइयां वर्तमान हिन्दीमें कविता करने- वालोंको पड़ती हैं और पड़ेगी। पण्डित श्रीधर पाठकजीने एकान्तवासी योगीमें “कहां जलहै वह आगी” लिखा है। लिखना चाहिये था 'कहां जलती है वह आग'। स्वर्गीय पण्डित प्रतापनारायण मिश्र उस तरहकी कविता बहुत साफ लिखते थे। लिखनेवाले जब लिखेंगे तो मैदान साफ हो जायगा, इतनी कठिनाइयां नहीं रहेंगी। लेखप्रणाली भारतमित्रके जन्म समय लार्ड लिटनका प्रेस एक देशी अखबारोंके सिर पर गरजता था। इससे आरम्भके दो तीन वर्षों में उसमें राज- नीति सम्बन्धी लेखोंकी कमी है। पर उस समय काबुलकी लड़ाई चल पड़ी थी, इससे उसकी खबरोंसे भारतमित्रकी अच्छी नामवरी थी। सन् १८८१ ई० देशी अखबारोंके लिये अच्छा था। उसमें लार्ड रिपन भारतके बड़े लाट हो गये थे, इससे देशी अखबारोंके शिथिल शरीरमें फिर उष्णताका सञ्चार हुआ। उस वर्ष भारतमित्रमें खूब राजनीतिक चर्चा है और खासे लेख हैं। आवश्यक सामयिक बातोंकी बराबर [ ४०४ ]
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