हिन्दी-अखबार लये खाली खूबसूरतीके लिये रख लिया है। आजकल मालूम नहीं, कौन सिहकारी सम्पादक हैं। ___“भारतजीवन" एक प्रान्तीय पत्र है। अपनेही प्रान्तमें यह अधिक फूलाफला है । कजरी, टप्पे, ठुमरी, बिरहा, गजल, लावनी, किस्से-कहानी, उपन्यास, बदमाशोंकी बोलचाल आदिकी पोथियां छापकर तथा ताश, शतरञ्ज, पहेली, गजल आदिकी बातं अखबारमें प्रकाशित करके वह अपने नगर और प्रतिके लोगोंको रिझाता रहा हैं। कठिन जान पड़ता है कि वह इस वृत्तसे बाहर निकले । इससे काशीमें एक ऐसे अखबारकी बड़ी जरूरत है जो वहांके फिसड्डी, निकम्मे, आलसी रईसोंको होश दिलानेके लिये उनके कानोंके पास जाकर नक्कारा बजावे और उनका फिसड़ीपन छुड़ावे। तीसरा दौर हिन्दी-बङ्गवासी वैशाख संवत् १९४७ में कलकत्तेके बङ्गवासी प्रेससे “हिन्दी बङ्गवासी" नामका एक समाचारपत्र निकला। इसके मालिक मनेजर सब बंगाली और सम्पादक भी बंगाली थे। उनका नाम पण्डित अमृतलाल चक्रवर्ती है, जो आजकल बम्बईके श्रीवेङ्कटेश्वर समाचारके सम्पादक हैं। बङ्गाली होनेपर भी आपने सम्पादन हिन्दी समाचारपत्रोंहीका किया है । कुछ दिन आप कालाकांकरके दैनिक हिन्दी पत्र “हिन्दोस्थान" के सम्पादक थे । पीछे भारतमित्रके सम्पादक हुए। “भारतमित्र" छोड़नेपर आपने बङ्ग- वासी प्रेसमें जाकर हिन्दी बङ्गवासी नामका एक बड़े आकारका हिन्दी अखबार चलाया, जिसको आगामी अप्रेल मासमें पूरे १६ साल हो जायंगे। आप उसके सम्पादक बने । “हिन्दी बङ्गवासी" एक दम नये ढंगका अखबार निकला । हिन्दीमें उससे पहले वैसा अखबार कभी न निकला था। वह डबल [ ३९३ ]
पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४१०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।