गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास १ संवत् १६४६ तारीख २० फरवरी सन् १८६० ईस्वीको हुआ था और संवत् १६६० में बन्द हो गया। यह पत्र लीथोमें बहुत छोटे साइज पर निकला था, १६ पृष्ठमें निकलता था। लिखाई-छपाई भी अच्छी न थी पर इतनी बुरी न थी कि पत्र पढ़ा न जाय । उक्त पत्र पाक्षिक था । कोई : संख्याओं तक उसका सम्पादन पण्डित रामप्रताप शर्माने किया। पीछे राज्यने श्री रंगनाथ प्रेसकी मनेजरी और सर्वहितके सम्पादनका भार पण्डित लज्जाराम शर्माको दिया। ३ साल तक वह उक्त पत्रको अच्छे ढङ्गसे चलाते रहे। चौथे वर्ष १२-१३ संख्या तक सम्पादन करके पण्डित लज्जाराम अलग हो गये। उनके अलग होनेके बाद पत्रकी दशा खराब होने लगी जो बन्द होनेके समय तक और भी खराब होती गई। पत्र रियासतकी ओरसे निकलता था। इससे रियासतके प्रधान कर्म- चारियोंकी इच्छा पर ही, उसका जीवन निर्भर था। उन्होंने जब तक उसे जिला रखना चाहा, वह जीता रहा और जब न चाहा तब बन्द कर दिया। यही उक्त पत्रके जारी और बन्द होनेका कारण था। तो भी इतना और कहा जा सकता है कि लज्जाराम शर्माके अलग हो जानेके बाद उसे वैसा योग्य सम्पादक नहीं मिला। लज्जारामजीके अलग हो जानेके पश्चात् यह पत्र कुछ दिन तो बदस्तूर पत्थरके छापे पर छपता रहा। पीछे टाइपके अक्षरोंमें भी छपने लगा, पर निरा खिलवाड़ होता था। न कुछ लेखोंका सिर-पैर होता था, न पत्रका सिद्धान्त था। हमें उक्त पत्रके तीसरे वर्षके कुछ नम्बर मिले हैं। यद्यपि उनमें राजनीतिकी चर्चा नहीं है, पर सामाजिक, धर्म, सम्बन्धी देशी कारीगरी, देशी कारोबार, भाषा और साहित्यके विषयमें कई एक बहुत खासे लेख और नोट हैं। खबरें ऐसे ढङ्गसे चुनी हैं कि पत्र पाक्षिक होनेपर भी वह बहुत पुरानी नहीं मालूम होती थीं। पत्रमें सनातन हिन्दू-धर्मका पक्ष किया जाता था। सामाजिक और [ ३७६ ।
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