गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास सूर्यसे यही दिखाया गया है कि उदयपुरके राणा सूर्यवंशी हैं । एकलिङ्ग उनके इष्टदेव हैं, भील और राजपूत उनके सिपाही हैं। महाराणा लोग धर्मके बड़े भारी रक्षक हैं और उनका यह दृढ़ विश्वास कि जो धर्मकी रक्षा करता है, ईश्वर उसकी रक्षा करता है । दुःख की बात है कि यह राज्य चिन्ह अव इतना घिम गयाहै कि इसकी शकल पहचानना कठिन है। पत्र पर अब भी यह भाषा लिग्वी जाती है-"श्रीमन महाराजा- धिराज महिमहेन्द्र यादवार्यकुल कमल दिवाकर श्रीरामेश्वरलिङ्गावतार विविध विरुदावली मोदित श्री १०८ श्रीमहाराणा सज्जनसिंहजीकी आज्ञानुसार संवत् १९३१ ईस्वीमें यह ममाचार पत्र सत्कम रूपी पीयूष- की प्रवृत्ति और असत् कर्मरूपी विषको निवृत्तिके निमित्त उदयपुर में उदयका प्राप्त हुआ।" संस्कृत श्लोकमें महाराणा मजन सिंहजी ने इस पत्रके सम्बन्धमें अपना मनोरथ भी प्रकाश किया है--- श्लोकाः चित्ते यस्य सदैव लोक सुखदं विद्यागुणोद्वर्द्धकम् । कृत्यं मानुषतोषपोषण कर संराजतेनीतितः ।। मद्देशेन जनागुणेन विमुखा दुष्टा न दृष्कर्मिणः । पीयूषांशु धरेदृशस्य महतः कार्यस्य सिद्धिं कुरु ।। १ ।। महेशस्थजनाः सुनीतिनिपुणा विद्योपदिष्टाः सुता। सर्वे स्वीय सुकर्मधर्म निरता विद्यागुणोत्कर्षकाः ।। नानाशिक्षक शिक्षितोपपठिताः शिक्षागृहद्वारतः।। चन्द्राङ्कित शेषरे दृश वृहत्कार्य्यस्य पूर्ति कुरु ।। २ ।। मदीया मही सर्वधान्याभियुक्ता फलैः कन्दशाकस्सु पुष्पैः प्रपूर्णा । जलाधार वापीतड़ागादितीरे पुरग्राम पल्लीनिवासोपरम्या ।। ३ ।। [ ३६८ ]
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