गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास बात हमने आरम्भ कर दी थी और "राजस्थान समाचार" भी इस समय दैनिक है। इससे उसकी बात साथही कह देना उचित समझा गया। राजस्थान समाचारका जन्म अजमेरमें सन १८८६ ईस्वीमें हुआ। वह अपनी उमरके १६ साल पूरे कर चुका है। अभी हालहीमें उसका सतरहवाँ वर्ष आरम्भ हुआ है। वह सामाहिक निकला था। दो रायल शीट-१६ पृष्ठ पर निकलता था। वार्षिक मूल्य ३) था । इस पत्रको समर्थदानजीने निकाला, जो जातिके चारण हैं। उस समय पत्रपर आपका नाम “मनीषी समर्थदान" छपता था। समर्थदानजी स्वामी दया- नन्दजीके बड़े भक्त थे । शायद मुंशी ममर्थदान कहलाते थे। दयानन्दजीने तो उनको मनीषी बनाया था। आरम्भमें उक्त पत्रकी आर्यसमाजकी ओर बड़ी भारी झोंक थी । आर्यसमाजका वह बड़ा पक्ष करता था। इसीसे लोग उसे आर्यसमाजका पत्र समझते थे । सन १८६४ ईस्वीमें बाबू राधाकृष्णदासने हिन्दी भाषाके सामयिक पत्रांका इतिहास प्रकाशित किया था, उसमें इस पत्रको आर्यसमाजका पत्र कहा है। हमने इस पत्रकी दूसरी संख्या सबसे पहले हाथरसके रेलवे स्टेशन पर देखी थी । यह श्रीभारतधर्म महामण्डलके श्रीबृन्दावनवाले महोत्सव- के समयकी बात है । इसका कागज कुछ अच्छा और चिकना था । टाइप और छपाई साफ थीं। पत्र खासा था। अजमेर जैसी जगहसे हिन्दीका एक वसा पत्र निकल जाना किसी प्रकार बुरा नहीं कहा जा सकता था। उसमें कुछ लेख आर्यसमाजी ढंगके होते थे, कुछ राजनीति आदिके सम्बन्धके, कुछ रजवाड़ोंकी चिट्ठी-पत्रियां और कुछ इधर उधरकी खबर । अजमेरका अखबार होनेपर भी अजमेरकी खबर उसमें कुछ भी न होती थीं। अजमेरमें कितनीही वार कितनीही घटनाएं हो जाती थीं, राजस्थान समाचारमें उनका चार पंक्तियों में भी उल्लेख नहीं होता था । जयपुरके स्वर्गीय दीवान कान्तिचन्द्र मुकर्जीने अजमेरहीके एक [ ३५६ ]
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