गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास - ट्य ट गजट" और काशीकी इस पत्रिकाकी सरकारी सहायता बन्द हुई। इसके बाद भी कुछ दिन “काशीपत्रिका" चलती रही। पर सरकारी सहायताकाही उसकी कमर में बूता था, मूल्य भी कम न था । ६)असल और १||-J डाक महसूल था । आमदनी बन्द होजानेसे उसने चिरकालके लिये सन १८६६ ईस्वीमें काशी लाभ की। ___ सन १८७६ ईस्वीमेंही अलीगढ़से भी एक हिन्दी साप्ताहिक पत्र निकला था, उसका नाम था “भारतबन्धु"। उसे वहाँके वकील स्वर्गीय बाबू तोताराम वमाने निकाला था। बाबू साहब हिन्दीके एक प्रसिद्ध लेखक और परमोत्साही भक्त थे। हिन्दीकी उन्नतिके लिये उन्होंने जीवनभर चेष्टा की । एक भापा-मम्बर्द्धिनी मभा बनाई थी, एक अच्छी लाइब्ररी भी बनाई थी। पर आपका पत्र कुछ अच्छे ढङ्गसे नहीं लिखा जाता था। समय पर नहीं निकलता था। पिछले दिनों बहुत भई कागज पर बहुत भद्दे और मोटे टाइपमें छपता था । लेग्व भी मरेमनकसे होते थे। दो-दो चार-चार सप्ताह गायब रहता था। सन १८६४ ईस्वी तक किसी प्रकार निकलकर अगले वर्ष बन्द हो गया। इसका मूल्य ७) रु० वार्षिक था। दृमरा दौर अबतक जिन हिन्दी समाचार पत्रोंकी बात कही गई है, वह आरम्भ समयके हैं। हिन्दी भाषामें समाचार पत्रोंकी नींव पड़नेके साथ-साथ उनका जन्म हुआ। अब दूसरे समयक पत्रोंकी बात कही जावेगी। उसकी नींव सन १८७७ ई० में पड़ी। उक्त वर्षसे हिन्दी में अच्छे अच्छे पत्रोंका जन्म होना आरम्भ हुआ। उनमेंसे कुछ तो नहीं हैं और कुछ अबतक चलते हैं। प्रथम समयके पत्र एक तो ठीक समय पर बहुत कम निकलने पाते थे। कुछ न कुछ कारण उनके बिलम्बसे निकलनेके हो जाते थे। दूसरे [ ३३० ]
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