पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३४२

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हिन्दी-अखबार नागरी अक्षर थे, इसीसे पहले वहांके सज्जनोंका ध्यान हिन्दी अखबारकी ओर गया। “अलमोड़ा अखबार" वर्तमान हिन्दी अखबारों में उमरमें सबसे बड़ा है और इसीसे वह बहुत कुछ आदरके योग्य है। दुःख यही है कि उसे इन ३३ सालमें कभी उन्नतिका अवसर नहीं मिला, लष्टम पष्टम किसी प्रकार निकलता चला जाता है। आजकल बादामी रङ्गके बहुत साधारण कागज पर फुलस्केप साइजके दो या तोन पन्नोंमें निक- लता है । महीने में दो बार निकलता है। उसका भी कुछ ठिकाना नहीं है, कभी निकलता है ; कभी नहीं निकलता । आरम्भमें साताहिक निकला था, दाम रखा था पौने सात रुपये वार्षिक । काशी निवासी बाबू श्रीराधा- कृष्णजीने सन १८६४ में “हिन्दी भापाके सामयिक पत्रोंका इतिहास" नामकी एक छोटीसी पुस्तक लिखी थी जो काशी नागरी प्रचारिणी सभाके प्रबन्धसे छपी है। उसमें उक्त बाबू साहबने इसके मूल्यकी अधिकता पर आक्षेप किया है -“इतने छोटे पत्रका मूल्य इसके स्वामीने जाने किस कारणसे ६) रखा है।” पर इसका कारण साफ था अर्थात जिस कविवचन सुधाकी देखा देखी यह निकला था, उसका मूल्य भी इतना ही था। मूल्य कम रखनेकी चाल पीछे पड़ी। आजकल उसका मूल्य सरकार और रईसोंसे है ही है। पर सर्वसाधारणसे २) और विद्यार्थियोंसे १।।) है। जन्म दिनसे आजतक उसने किसी बातमें विशेष परिवर्तन नहीं किया। ३३ सालके पुराने समयको यह आजतक पकड़े बैठा है। खैर, इसे भी एक गुण समझ लेना चाहिये। __ अलमोड़ा अखबारको हम कोई दस ग्यारह सालसे देखते हैं। इतने दिनोंमें उसको सदा एकही ढङ्गका पाया। कभी कोई विशेष परिवर्तन उसमें देखने में नहीं आया। उसकी भाषाके विषयमें हम किसी प्रकारकी आलोचना करनेकी आवश्यकता नहीं समझते। जिस स्थानसे वह निकलता है, उसके अनुसार उसकी भाषा है। तीस साल पहलेके उर्दू [ ३२५ ]