पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३३३

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास जीमें ऐसी जगह कर ली थी कि कविचनसुधाके हर नम्बरके लिये लोगोंको टकटकी लगाये रहना पड़ता था। जो लोग समझते थे, वह भी प्रशंसा करते थे। दुःग्व है कि हमको एक नम्बर भी उस पत्रका नहीं मिलता, नहीं तो उसमेंसे कुछ नमूने दिखाते । दुःखकी बात है कि बहुत जल्द कुछ चुगुलखोर लोगोंकी दृष्टि उस पर पड़ी। उन्होंने कवि- वचनसुधाके कई एक लेखोंको राजद्रोह-पृरित बताया। दिल्लगीकी बातों- को भी वह लोग निन्दासूचक बताने लगे। 'मरसिया' नामका एक लेख उक्त पत्रमें छपा था, यार लोगोंने छोटेलाट सर विलियम म्योरको सम- झाया कि यह आपहीको खबर ली गई है। सरकारी सहायता बन्द हो गई। शिक्षा विभागके डाइरेकर केम्पसन माहबने बिगड़कर एक चिट्ठी लिखी । हरिश्चन्द्रजीने उत्तर देकर बहुत कुछ समझाया बुझाया। पर वहां यार लोगोंने जो रंग चढ़ा लिया था वह न उतर।। यहां तक कि बाबू हरि- चन्द्रजीको चलाई “हरिश्चन्द्र चन्द्रिका” और “बालाबोधिनी" नामकी दो मासिक पत्रिकाओंकी सौ-सौ कापियां प्रान्तीय गवर्नमेण्ट लेती थी, वह भी बन्द की गई। ___ इन फिकरेबाज लोगोंके दममें हाकिम कभी-कभी किस प्रकार आ जाते हैं. इसकी एक उन्हीं दिनोंकी दिल्लगी सुननेके योग्य है। हमारे वतमान महाराज सप्तम एडवर्ड उस समय प्रिन्स आफ वेल्स थे और श्रीमानने भारतमें पदार्पण किया था। राजभक्तिकी तरङ्गोंसे भारतवर्ष भारतमहासागरकी तरह तरङ्गित था। कवि वचनसुधाने श्रीमानके स्वागतमें “पाद्यार्थ्य” नामकी एक कविता लिखी थी। सब लोग जानते हैं कि पाद्यार्घ्य कितनी आदरकी वस्तु है। यदि उसका अनुवाद स्वागत किया जाय तो वैसा सुन्दर नहीं होता। हरेक हिन्दू जानता है कि पाद्यार्घ्य कितनी शिष्टताका बरताव है और हिन्दुओंकी कैसी पुरानी चाल है। तथापि यार लोगोंने हाकिमको समझाया था कि इसका अर्थ [ ३१६ ]