पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३३०

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हिन्दी-अखबार अखबार" की इबारतकी किसलिये दिल्लगी की। उर्दू में दो एक शब्द संस्कृतके मिला देनेके लिये की, या विशुद्ध हिन्दी न लिख सकनेके लिये की ; अथवा सम्पादकके लिङ्ग-ज्ञान पर की। हमारी समझमें सम्पादक बहुत दोपी नहीं। एक तो वह दक्षिणी थे, दुमरे उस समय तक हिन्दीका कोई ऐमा नमूना मौजूद न था, जिसके अनुसार वह लिखते और भाषा उर्दू न कहलाकर हिन्दी कहलानेके योग्य होती। ____ यह ठीक है कि श्रीलल्ठूलालजीक प्रेमसागरकी भाषा उनके लिये आदर्श हो सकती थी। पर लल्लूजीके परिश्रमकी ओर किमीने ध्यान नहीं दिया। उनकी भाषा उनकी पोथीहीमें रह गई। आगे और पोथियां लिग्बकर किमीने उनकी चलाई हुई भाषाकी उन्नति नहीं की। लल्लूजीने उदवालोंके साथ माथही प्रेमसागर लिखकर हिन्दीमें गद्य लिग्बनेकी रीति चलाई थी। दुःखकी बात है कि उद्देकी उन्नति तो होती रही, पर हिन्दीको कुछ न हुई। यदि लल्लूजीके प्रममागरकी भांति दस पांच और पोथियां हिन्दीमें लिग्वी जाती तो “वनारस अग्वबार" को हिन्दी लिखनेका एक अच्छा मार्ग मिलता, पर लल्लूजीके याद कोई माठ सालतक किसीने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया । अन्तको स्वर्गीय बाबू हरिश्चन्द्रजीने मरी हुई हिन्दीको फिरसे जिलाया । जिस प्रकार गद्य लिखनेकी नीव आधुनिक हिन्दीमें उर्दू गद्यसे दो एक सालही पीछे पड़ी, वैसेही समाचारपत्रकी नींव भी दो चार साल बादही पड़ गई थी। पर दुःख यह है कि उसकी मजबूतीकी ओर किसीने ध्यान नहीं दिया। लाहोरसे उर्दका “कोहेनूर” सन १८५० ईस्वीमें निकला था। उसी साल काशीसे "सुधाकर” नामका हिन्दीपत्र तारामोहन मित्र नामी एक बंगाली सज्जनके द्वारा प्रकाशित हुआ। कोहेनूर बहुत दिन तक भलीभांति चला और अबतक भी उसका अस्तित्व एकदम मिट नहीं गया है, पर “सुधाकर” बहुत दिन नहीं [ ३१३ ]