गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास छपता था। एक महाराष्ट्रीय सजन गोविन्द रघुनाथ थत्ते उसके सम्पादक थे । उसका मोटो यह था- सुबनारस अखबार यह, शिवप्रसाद आधार । बुधि विवेक जन निपुनको, चित हित बारम्बार ।। गिरजापति नगरी जहां, गङ्ग अमल जलधार । नेत शुभाशुभ मुकुरको, लखो विचार विचार ।। उसकी भाषाका भो एक नमूना उक्त पोथीमें दिखाया गया है। वह इस प्रकार है- “यहां जो पाठशाला कई सालसे जनाब कप्तान किट साहब बहादुरके इहतिमाम और धर्मात्माओंक मददसे बनता है उसका हाल कई दफा जाहिर हो चुका है। अब वह मकान एक आलीशान बन्नेका निशान नय्यार हर चेहार तरफसे हो गया, बल्कि इसके नकशेका बयान पहिले मुंदर्ज है सो परमेश्वरके दयासे साहब बहादुरने बड़ी तन्देही मुस्तैदीसे बहुत बेहतर और माकूल बनवाया है ! देखकर लोग उस पाठशालाके कितेके मकानोंकी खूबियां अक्सर बयान करते हैं और उसके बननेसे ग्वर्चका तजवीज करते हैं कि जमासे जियादा लगा होगा और हर तरहसे लायक तारीफके है सो यह मब दानाई साहब ममदृहकी है। वर्चसे दूना लगावटमें वह मालूम होता है।" महाराज काशिराजके शिक्षागुरु मुंशी शीतलसिंह साहबने इस भाषाकी एक कता लिवकर दिल्लगी की थी। वह कता इस प्रकार है- "बनारसमें इक जो बनारस गजट है। इबारत सब उसकी अजब ऊटपट है ।। मुहर्रिर बिचारा तो है बा-सलीका। वले क्या करै वह कि तहरीर भट है ॥" इस कतेसे यह पता नहीं लगता कि मुंशी साहबने “बनारस [ १२ ]
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