गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास है, वह खूब मोटे-ताजे है, जैसे अंगरेज, मुसलमान और पारसी। और हिन्दुओंमें छूतछात होती है, इसीसे उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता। इस कथनमें लखककी अटकल अधिक है और अनुभव कम। नहीं तो सीधी बात है कि जिन लोगोंको खानेपानेको अच्छा मिलता है, वही खूब मोटे ताजे हैं । कलकत्तमें लाखों गरीब मुसलमान दुवलापनके मारे शाहदुलहके चूहे बने हुए हैं। उनके बच्च ऐसे होते है कि उनमेंसे आधेसे अधिक सालभरके नहीं होने पाते और मर जाते हैं। छूतछात न माननेसे यदि वह मोटे हो सकते तो खब ही मोटे होत । और छूतछात माननेसे यदि दुबल होते तो कलकत्त में जितने मथुराक चौबे हैं, सब दुबल होते । हजारों कनौजिये यहां ऐसे जबरदस्त हैं कि जो तीन-तीन लम्बनऊवालोंका बगल में दवाकर भाग जा सकते हैं, यदि छूतछातसे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता तो वह निरे दुबलं पतलं होते। हालांकि मब जानते हैं कि कन्नौजियोंसे बढ़कर और कोई छूतकात नहीं मानता है। जो लोग कृतछात नहीं मानना चाहते हैं उनको चाहिये कि अच्छी दलीलोंसे काम लं, बेतुकी हांक न लगाया कर। उसी लखमें उसी लग्बकने वाल्य-विवाहकी निन्दा की है, विधवा विवाहकी तरफदारी की है, विलायत दौड़ जानेको अच्छा समझा है, स्त्रियोंको शिक्षा देनेका पक्ष लिया है। यह सब बानं अच्छे तकसे नहीं लिखो गईं, घृणा दिखाकर और हिन्दुओंको गाली देकर लिखी हैं और कई एक बात हिन्दू-धर्मसे घृणा दिलानेके लिये उक्त लेखकने लिखी हैं। वह कहता है कि धर्मको आड़में हिन्दु बहुत पाप करते हैं। जीती स्त्रियां मरे पतिके साथ जबरदस्ती जला दी जाती थीं, छोटे छोटे बच्चे गङ्गामें फेंक दिये जाते थे, दक्षिणमें छोटी छोटी लड़कियां धर्मके नामसे अब वेश्या बनाई जाती हैं। लेखकने न कुछ सोचा है, न कुछ पढ़ा है, न देखा है । हिन्दुओंके विरुद्ध बात सुनते सुनते हिन्दुओंसे उसके जीमें जो घृणा उत्पन्न हो गई है, वही [ ३०२
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