गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास था । तरजमेमें उसका उर्दू नाम “आसारे जदीद" लिखा गया। इसपर मखजनके सम्पादक साहब लिखते हैं कि अनुवाद-कर्त्ताने हिन्दी में लिखा होनेके कारण असरे जदीदको “आसारे जदीद" पढ़ लिया। उनको इतनी भी ग्ववर नहीं है कि हिन्दी और बङ्गलाके अक्षर अलग अलग हैं, एक नहीं हैं। पर उड़की हिमायतके खयालने उनको इतना घबरा दिया कि बङ्गला हिन्दीका कुछ ग्वयाल न रहा। हिन्दीके लिये उन्हें जे, जीम और स्वादका इतना खयाल रहा, पर उट्ट के लिये कुछ भी न रहा । आपने उसी लेग्वम् भारतमित्रको "भारतमित्रा' लिखा और प्रवामीको ‘प्रमामी" छापा । यह कुछ ऐसे मुशकिल शब्द नहीं थे, जिनके लिये उनको इतनी गलतीकी जरूरत पड़ती, पर बात यही है कि उर्दू वाले अपने शीन काफके फरफारमें पड़े हुए दृमरी भाषाओंकी ओर ध्यान ही नहीं देते। वह ताका करते हैं कि दृमरी भाषाओंके जाननेवाले उनके ज्वाद और जोयमें गड़बड़ न कर दं । आप दूसरी भापाओंके शब्दको कमा ही गलत लिख, कुछ परवा नहीं। जो कुछ हो, उर्दू मासिक पत्रों में "मग्वजन" उत्तम पत्र है, होनहार है और उससे बहुत कुछ आशा की जा सकती है। इसमें कुछ तसवीर भी होती हैं, पर अभी वह इम योग्य नहीं कि जिससे पत्र तसवीरदार कहा जा सके । पत्रका आकार डिमाई आठ पेजीके ६४ पृष्ठ हैं। छपाई- मफाई ग्वामी होती है। कागज उत्तम लगाया जाता है । मूल्य अच्छे कागज पर ३) दुसरे दजक कागजपर २) महसूल डाक 1-) है। जमाना उद के मामिक-पत्रोंमें और भी कई एक उत्तम हैं। उनकी बात हम अगले लेखमें कहेंगे, जो इस सिलसिलेका अन्तिम लेख होगा। उर्दू की उन्नति कवितासे आरम्भ हुई । गद्य लिखनेकी चाल उसमें बहुत [ २९८ ]
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