गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास लेखोंका आदर करते हैं। यह मेल बहुत खासा है। इसके लिये हम मखजनको प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते । ___ उक्त पत्र में अब तक जो लेख निकले हैं, उनका बहुत अंश अंगरेजी पुस्तकों यालेखोंका अनुवाद है । कुछ लेख पश्चिमीय लेखोंकी छाया हैं । यह बात गद्य और पद्य दोनों में है । लेखकोंके निजके लिखे हुए प्रबन्धोंमें ऐसे लेखबहुत कम निकले हैं, जो विशेप प्रशंसाके योग्य हों। अथवा दृमरी भाषाओंके पत्र उनमेंसे कुछ उपलब्ध कर सके। इसके सिवा मामयिक और प्रान्तिक लेखोंकी भी इसमें बहुत कमी है। उधर सम्पादक और लखकोंका ध्यान भी बहुत कम है। मग्वजनमें पोलिटिकल लख्ख नहीं छपते हैं। पोलिटिकसमें वह बहुत पड़ना नहीं चाहता। पर इसके सिवा भो और बहुतसे सामयिक मामले ऐसे होते हैं, जिन पर मासिक- पत्र ग्ब प्रबन्ध लिग्वते हैं। बङ्ग-भाषाके मामिकपत्र ऐसे अवसरों पर कभी नहीं चूकते। पञ्जाबमें प्लंगका मामिला ऐसा था कि उस पर कई अच्छे अच्छे प्रबन्ध लिखे जा सकते थे । पञ्जाब प्लंगसे उजड़ गया पर मखजनमें कभी उमका उल्लख तक न हुआ । दिल्ली दरबारके समय उसका दरवार नम्बर निकला था, मामूली नम्बरोंसे वह मोटा भी बहुत है। पर देखिये तो दरवारसे उसका कुछ सम्बन्ध नहीं है। ____ और कई प्रकारको मङ्कीर्णता हैं, जो इस पत्रकी उन्नतिमें बाधा देती हैं। कई प्रकारके विचार इसके चलाने वालोंके मनको उदार नहीं होने देते। इसके सम्पादक मुंशी अब्दुलकादिर बी० ए० "मुहम्मडन अब- जरवर" नामके एक अंग्रेजी-पत्रके सम्पादक भी हैं । उक्त पत्रकी पालिसी कुछ हिन्दुओंके विरुद्ध है । यदि एक मामलमें हिन्दू और मुसलमानोंका मुकाबिला होता है तो न्याय चाहे किसी ओर हो, उक्त पत्रको मुसल- मानोंका पक्षही अवलम्बन करना पड़ता है। पोलिटिकल मामलों में भी आपको राय हिन्दुओंसे नहीं मिलती है। शायद यही कारण है [ २९६ ]
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