गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास अपने कर्त्तव्यको पहचानते थे। लाहोरसे “रफीके हिन्द” नामका एक अखबार निकला था, जो बहुत दिनतक अच्छे ढंगसे चलता रहा । आरम्भमें उसकी पालिसी लगभग वही थी, जो हिन्दुस्तानीकी है। पीछे सर सय्यद अहमदग्यांकी आकलेण्ड कालविन साहबके समयकी नीतिमें उसे फंसना पड़ा । आरम्भमें सर सय्यद अहमदखां हिन्दू मुसलमानका खूब मेल चाहते थे। हिन्दु मुसलमानोंको वह अपनी दोनों आंख बताते थे। अलीगढ़ महम्मडन कालिजके लिये चन्दा वसूल करनेके समय उनको यही पालिसी थी। पर प्रयागकी चौथी कांग्रेसके समय छोटे लाट कालविन साहबकी हवामें भरकर उन्होंने मुसलमानोंको हिन्दुओंसे फट कर चलनेकी सलाह दी। वही पालिसी उस समयके कई एक मुसलमान अखवारोंने स्वीकार की। "अलीगढ़ इन्सटीट्य ट गजट" नामका सर सय्यद अहमखाका एक उर्दू अंगरेजीका अग्वबार अलीगढ़से निकलता था। वह इस पालिमीका नेता बना। लखनऊके अवधपञ्चके सिवा प्रायः सब मुसलमानी अखबार उसमें शामिल हए । “रफीके हिन्द" भी उनके साथ था। पीछे वह स्वयं मय्यद साहबसे लड़ गया। कुछ दिन मुसलमानोंकी हिमायत करता रहा। अन्तमें फिर हिन्दू-मुसल- मानोंके मेलकी पालिसीपर आया। बीचमें दो तीन वर्ष बन्द रहकर गत वर्ष फिर उक्त पत्र निकलता था, पर इस वर्ष बन्द मालूम होता है। इस समय भी जो मुसलमानी अखवार हैं, वह मुसलमानोंको हिन्दुओंसे अलग रखनेमें प्रसन्न हैं। अवधपञ्च अब भी उनसे अलग है और अपनी उसी हिन्दू-मुसलमानोंके मेलकी पालिसीपर दृढ़ है। जिस समय "हिन्दुस्तानी” निकला था. लखनऊसे उर्दू के कई एक अखबार निकले थे। अब उनमें से बहुतसे बन्द होगये। ठीक ढङ्गसे केवल तीनही कागज चलते हैं । अवध अखबार; अवधपञ्च और हिन्दु- स्तानी। लखनऊमें जन्म लेनेपर भी हिन्दुस्तानीकी उर्दू कभी अच्छी
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