उर्दू-अखबार साकीकी बहुत कुछ इज्जत थी। रिन्दलोग उससे शराब पीते थे । उससे उसे अपना सर्वस्व समझकर मनकी सब वान उसके आगे कह डालते थे। मनकी बातोंको खोलकर कह डालनेका यह ढंग उक्त देशोंके • वियोंको बहुत पसन्द था वही चाल उनकी सन्तानने हिन्दुस्थानमें आकर उर्दू कवितामें चलाई। अवधपञ्चक साकीनामोंमें साल भरकी सब बातोंकी झलक होती थी। होलीमें वह सदा रंगीन निकलता था और अब भी निकलता है। होलीके नम्बर में होलीहीक लेख होते हैं । और कोई पत्र भारतवर्ष में इस चालका निबाहनेवाला नहीं है। जातीय- ताका इतना बड़ा खयाल और किस अग्वबारको है ? भारतके समाचार- पत्र भारतहोमें निकलते हैं और वह इस देशकी बातोंसे इतने शून्य होते हैं कि उन्हें भारतके पत्र कहनेसे भी लज्जा आती है। अवधपञ्चके सम्पादकमें भी कुछ विशप गुण हैं । वह केवल दिल्लगी- की भाषामें अखबार ही नहीं लिरले. वरञ्च म्वयं भी हास्यरसकी सजीव मूर्ति हैं। सन १८६६ ई० में प्रयागकी चौथी कांग्रेसमें पुलिसके विषयमें उनकी वक्तृता सुनकर लोग हंसीके मारे लोट पोट हो गये थे । सारे मंडपमें उनकी धूम पड़ गई थी। थोडसे शब्दों में बहतसा मतलब अदा कर देना अवधपञ्च सम्पादक मुंशी मुहम्मद सज्जादहुसैन साहबका खास हिस्सा है। वह हिन्हू मुसलमानोंको एक दृष्टिसे देखते हैं । सदा अपने अखबार द्वारा उन्होंने दोनोंमें मेल रखनेकी चेष्टा की। उन अखबारोंका कभी साथ न दिया जो एक समूहकी तरफदारी और दूसरसे विरोध करनेको बहादुरी समझते हैं। अवधपञ्च अब भी बराबर जारी है, पर दुःखकी बात है कि अच्छी अवस्थामें नहीं। उसका वह जोशोखरोश नहीं है, वह धूमधाम नहीं है। बहुत दबी हालतमें पत्र किसी प्रकार निकल जाता है। इसका कारण एक चिठ्ठी द्वारा पूछा गया था। उत्तर में उसके मालिक और
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