उर्दू-अखबार महाराज दिलीपसिंहके माथ विलायत चलागया, उमीकी अग्ववार कोहेनर यादगार है। वही उद्देका पहला अग्वबार और उर्दू अग्रवार नवीसीका जन्मदाता कहलानेका हकदार है। विलायत आदिमें ऐसे पत्रको बहुतसा धन देकर खरीदनेवाले और फिर उसको उमकी हैमियन- के मुवाफिक चलानेवाले बहुत लोग मिल सकते हैं। पर पञ्जाबका उका कोहेनूर कीचड़में निमग्न हो रहा है। कोई पूछनेवाला तक नहीं ! कोहेनूरसे पञ्जाबमें प्रेम और समाचारपत्रोंका बहुत कुछ प्रचार हुआ है। इस समय भी पञ्जाबमें कई नामी प्रेमवालों और अखबारवालों में वह लोग मौजूद हैं, जो कोहेनूरकी नौकरी करके सीखे और उन्नतिको प्राप्त हुए हैं ! कोहेनूरके कापीनवीसोंमेंसे कई एक प्रेसोंके मालिक हैं ! उसके सम्पादकोंमेंसे कई एक न केवल नामी सम्पादक ही, वरञ्च बड़े-बड़े प्रसिद्ध पदाधिकारी भी हुए हैं। लग्बनऊ के स्वर्गीय मुंशी नवलकिशोर, जो हिन्दुस्थानके प्रेसवालोंमें लामानो हो गये हैं, एक समय कोहेनूर प्रसके मुलाजिम थे । मुंशी हरसुखरायजीको कृपा ही लग्वनऊमें मुंशी नवलकिशोरको आरम्भिक उन्नतिका कारण थी। भारतमित्रके वर्तमान सम्पादकका जिस समय कोहेनूरसे सम्बन्ध था, उस समय एकवार मुंशी नवलकिशोर लाहोर गये थे । कोहेनूर आफिसमें जब मुंशी हरसुखरायसे मिले तो बराबर उनको “हुजर, हुजूर" कहकर सम्बोधन करते थे और मुंशी हरसुखराय उन्हें “मुंशी साहब' कहते थे। वह प्रयागकी चौथी कांग्रसका जमाना था। उस समय “कोहेनूर" कांयस का पूरा तरफदार और मुंशी नवलकिशोर, सैयद अहमद खां और राजा शिवप्रसाद महित कांग्रसके बड़े विरोधी थे। मुंशी साहब टहलते-टहलते कोहेनूर-सम्पादकके कमरेमें भी आये। फरमाया- “एडीटर साहब ! एक एन्टी-कांग्रस आपके घरमें उतर रहा है, आप उसे मार तो न डालंगे ?” उत्तर मिला-"एक तो आप बड़े आदमी, दूसरे छोटेलाट कालविनकी आपपर [ २५९ ]
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