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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा क्या अच्छा होता, जो पण्डित प्रतापनारायण मिश्र अपनी जीवनी आप लिख डालते। बड़े मौकेसे उन्होंने अपने 'ब्राह्मण' पत्रमें अपनी जीवनी स्वयं लिखनी आरम्भ की थी। उसके बाद वह चार-पांच साल तक जीते रहे थे। यदि थोड़ी-थोड़ी भी लिखते तो बहुत-कुछ लिख जाते। अपनी जीवनीका जितना अंश वह 'ब्राह्मण' के तीन अङ्कोंमें लिख गये हैं, उसे पढ़कर बार-बार जीमें यही होता है कि यदि सब नहीं, तो अपने पिताके मम्बन्धकी पूरी बात और अपने लड़कपनकी बात तो लिखही जाते। प्रसिद्ध लोगोंकी जीवनियाँ बहुत करके दूसरोहीको लिखी हुई होती हैं, पर बहुतसे प्रसिद्ध लोगोंने अपनी पूरी या अधूरी जीवनियाँ स्वयं भी लिग्यो हैं और वह दसरोंकी लिखी जीवनियोंसे कम कामकी नहीं हुईं, वरञ्च कितनेही अंशोंमें बढ़कर हुई हैं। मनुष्यकी कितनीही बात और कितनेही विचार ऐसे हैं, जिनको यह म्वयं ही भली-भांति जानता है और लिग्ब सकता है। ____ हरबट म्पेन्सरने अपनी जीवनीके सम्बन्धकी बहुत-सी बात लिखी हैं। वह एमी हैं कि यदि उन्हें वह स्वयं न लिखते तो कोई न लिग्वता और न कोई जानता। पण्डित प्रतापनारायणने अपनी लिग्बी जीवनीमें अपना वंश परिचय जिम उत्तम रीतिसे दिया है, उससे कहीं बढ़कर अपने पिताका हाल लिग्वते और अपना हाल, तो वह न जाने कितना सुन्दर लिग्यते। हमने उनके मुंहसे उनके लड़कपनकी कितनीही बात सुनी हैं। सुनकर बड़ी हंसी आती थी, बड़ा आमोद होता था, बड़ा आनन्द आना था। उनके कहनेका ढंग बड़ा बांका था। बात करते ममय मवका ध्यान अपनी ओर खींच लेनेकी शक्ति उनमें विलक्षण थी। इससे कहते हैं कि यदि वह अपने लड़कपनकी बात भी लिग्ब जाते तो विचित्र होतीं। इसके सिवा वह मनके बड़े साफ थे। अपने किसी दोषको छिपाना भी दोष समझते थे। सब कह डालते थे। ऐसे खरे आदमीकी लेग्वनीसे न जाने कितनी खरी बात निकल जातीं। पर