पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२५

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा नहीं है, उक्त दोनों भाइयोंका वंश है। पर अधिक स्नेह सम्बन्ध न होनेके कारण उनकी कथा लिखना भी कागज रंगना मात्र है । अतः हम अपने निज बाबा रामदयाल मिश्रसे आरम्भ करते हैं। इनके दर्शन हमने नहीं पाये, क्योंकि हमारे पितृचरण केवल नौ वर्षके थे, जब उन्होंने परलोक यात्रा की थी। सुनते हैं कि वे कवि थे, पर उनका काव्य देखने में नहीं आया । भारतके अभाग्यसे नगरोंमें तो काव्य-रसिक और कवियोंके सहायक मिलतेही नहीं, जो अपना रुपया लगाके उत्तमोत्तम कविताका प्रकाश किया करते हैं। उन्हें तो अभागे भारतीय हतोत्साह करही देते हैं। यदि एक साधारण गाँवमें एक साधारण गृहस्थका परिश्रम लप्स होगया तो आश्चर्य ही क्या है ? भगवान तुलमीदाम, सूरदास आदिको हम कवियोंमें नहीं गिनते। वे अवतार थे कि उन्होंने छातीपर लात मारके अपनी शक्ति दिखाई है। नहीं तो कवि, पण्डित, प्रेमी, देशभक्त, यह तो दुनियाँसे न्यारे रहते हैं। इन्हें दुनियाँदार क्यों पूछने लगे ? हमें शोच है कि अपने बाबाकी कविता प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि पिताजी नौ वर्ष की आयुमें पितृहीन हुए। १४ वर्षकी आयुमें उन्हें गांव और घर छोड़के कुटुम्ब पालनार्थ परदेश आना पड़ा। ऐसे कुसमयमें कविता-संग्रह करना कसे सम्भव था ? इससे हमें अपने पिताहीका ठीक-ठीक चरित्र थोडासा लिखनेकी सामर्थ्य है। हमारे पितृचरणके दो बड़े भाई और थे। (१) द्वारिकाप्रसाद काका,—यह निस्मन्तान स्वर्ग गये। (२) यदुनन्दन काका, इनका विवाह मदारपुरके सामवेदियोंके कुलमें हुआ था। इस नगरके परम प्रतिष्ठित श्रीप्रयागनारायण तिवारी स्वर्गवासी हमारे दादा थे, क्योंकि हमारी चाची उनके चाचा श्रीद्वारिकाप्रसाद त्रिपाठीकी कन्या थीं। उनके एक पुत्र अम्बिकाप्रसाद दादा थे। वह हमारे पितृचरणके बड़े भक्त थे, पर चौदह वर्षकी अवस्था में परलोक सिधारे। हमारी दोनों चाची भी [ ८ ]