गुप्त-निबन्धावली चिट्टे और खत बात निश्चित है, यह बात यहाँके लोगोंकी समझमें नहीं आती। निश्चित ही होती तो लार्ड जार्ज हमिल्टन और ब्राडारिककी गद्दी साधुवर माली तक कैसे पहुँचती! ____न बंगभंगही निश्चित विषय है और न भारतका यथेच्छ शासन । स्थिरता न प्रभातको है और न सन्ध्याको। सदा न वसन्त रहता है, न ग्रीष्म । हाँ, एक बात अब भारतवासियोंके जीमें भली भांति पक्की होती जाती है कि उनका भला न कन्सरवेटिवही कर सकते हैं और न लिबरलहो। यदि उनका कुछ भला होना है तो उन्हींके हाथसे। इसे यदि विज्ञवर माली “निश्चित-विषय" मान लं तो विशेष हानि नहीं । अतः भारतवासियोंका भला या बुरा जो होना है सो होगा, इसकी उन्हें कुछ परवा नहीं है। उन्हें ईश्वरपर विश्वास है और काल अनन्त है, कभी न कभी भलेका भी समय आजायगा। भारतवासियोंको चिन्ता केवल यही है कि उनके देशसचिव साधुवर माली साहबको अपनी चिरकालसे एकत्र की हुई कीर्ति और सुयशको अपने वर्तमान पदपर कुरबान न करना पड़े। इस देशका एक बहुतही साधारण कवि कहता है- झूठा है वह हकीम जो लालचसे मालके, अच्छा कह मरीजके हाले तबाहको । अपने लालचके लिये यदि रोगीकी बुरी दशाको अच्छा बतावे तो वह हकीम हकीम नहीं कहला सकता। भारतवासी आपको दार्शनिक और हकीम समझते हैं। उनको कभी यह विश्वास नहीं कि आप अपने पदके लोभसे न्यायनीतिकी मर्यादा भङ्ग कर सकते हैं या अपने दलकी बुराई भलाई और कमजोरी मजबूतीके खयालसे भारतके शासन रूपी रोगीकी बिगड़ी दशाको अच्छी बता सकते हैं। आपहीके देशका एक साधु पुरुष कह गया है-“आयर्लेण्डकी स्वाधीनता मेरे जीवनका व्रत है, [ २३२ ।
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