पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२३३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली चिट्ठे और खत यदि मैंने जान बूझ कर एक दिन भी अपनी सेवामें चूक की हो, यहांकी प्रजाकी शुभचिन्ता न की हो, यहाँकी स्त्रियोंको माता और बहनकी दृष्टिसे न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जानेकी आज्ञा दे !" माई लार्ड ! जिस प्रजामें ऐसे राजकुमारका गीत गाया जाता है, उसके देशसे क्या आप भी चलते समय कुछ सम्भाषण करंगे ? क्या आप कह सकंगे-"अभागे भारत ! मैंने तुझसे सब प्रकारका लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी जो इस जीवनमें असम्भव है, तूने मेरा कुछ नहीं विगाड़ा, पर मैंने तेरे बिगाड़नेमें कुछ कमी न की। संसारके सबसे पुराने देश ! जब तक मेरे हाथमें शक्ति थी तेरी भलाईकी इच्छा मेरे जीमें न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिये कुछ कर सकं, पर आशीर्वाद करता हूं कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यशको फिरसे लाभ करे। मेरे वाद आने वाले तेरे गौरवको समझ ।" आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बात भूल सकता है, पर इतनी उदारता माई लार्डमें कहां ? ( भारतमित्र २१ अक्तूबर १९०५ ई.) बङ्ग विच्छेद (८) त १६ अकोबरको बङ्गविच्छेद या बंगालका पार्टीशन हो गया। पूर्व बंगाल और आसामका नया प्रान्त बनकर हमारे महाप्रभु माई लार्ड इंगलेण्डके महान राजप्रतिनिधिका तुगलकाबाद आबाद होगया। भङ्गड़ लोगोंके पिछले रगड़की भांति यही माई लार्डकी सबसे पिछली प्यारी इच्छा थी। खूब अच्छी तरह भंग घुट कर तय्यार होजाने पर भंगड़ [ २९६ ]