पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२३

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा म्वर्गमें बहुतसे तारागण एवं पृथ्वीपर बहुत अन्न और पशु भी उत्पन्न किये थे । यह बात अन्य मतावलम्बी अथच आजकलके अंग्रेजीबाज न मानं तो हमारी कोई हानि नहीं है, क्योंकि मभीके मत-प्रवर्तक और वंश-चालकोंके चरित्रोंमें आश्चर्यकर्म पाये जाते हैं । फिर हमी अपने बाबाकी प्रशंसामें यह बात क्यों न मान ? ईश्वर सर्व शक्तिमान है, वह अपने निज लोगोंको चाहे, जैसी सामर्थ्य दे सकता है । भगवान कृष्णचन्द्रका पर्वत उठाना, महात्मा मसीहका मुरदे जिलाना, हजरत मुहम्मदका चन्द्रमा काटना इत्यादि यदि सत्य हैं, तो हमारे बाबाका थोडीसी सृधि बनाना भी सत्य है । यदि उन बातोंका गुप्तार्थ कुछ और है, तो इस बातका भी गुप्तार्थ यह है कि जगतके अनेक पदार्थीका रूप, गुण, स्वभाव आदि पहिले पहिल उन्होंने सबको बतलाया था। इसीसे उम कालके लोग उन पदार्थीको विश्वामित्रीय मृष्टि, अर्थात विश्वामित्रकी ग्बोजी और बताई हुई सृष्टि कहने लगे। यही बात क्या कम है ? भगवान रामचन्द्रजीको हमारे बाबाने धनुर्वेद और योगशास्त्र भी सिखाया था। यदि आजकल हमारे भाई आकिन, मझिगाँव आदिके मिश्र इस महत्त्वपर कुछ भी ध्यान दें, तनिक भी विचार कि हम किनके वंशज हैं और अब कैसे हो रहे हैं तो क्या ही सौभाग्य है ।।। इनके उपरान्त कात्यायन और किलक ( अक्षील ? ) के सिवा और किसी महर्पिका नाम हमें नहीं मिलता, जिन्हें हम अपने पुरखोंमें बतलावं । हाँ, परमनाथ ( या पवननाथ ) बाबा अनुमान होता है, कि तीनही चाग्मो वर्पक लगभग होगये हैं। वह बड़े यशस्वी थे । उनके साथ हमारे कुलका बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। कान्यकुब्जपुर ( कन्नौज ) छोड़के विजयग्राम (बजेगांव ) में कौन बाबा किस समय, क्यों आबसे थे, इसका पता नहीं मिलता। क्योंकि हमारे यहाँ इतिहास एवं जीवनचरित्र लिखनेकी चाल बहुत दिनसे नहीं रही। यदि किसी भाईके यहां शृङ्खलावद्ध नामावली हो तो उसका मिलना कठिन है । अतः [ : ]