गुप्त-निबन्धावली चिठे और र है, तथापि आपके शासनकालका नाटक घोर दुःखान्त है और अधि आश्चर्यको बात यह है कि दर्शक तो क्या स्वयं सूत्रधार भी नहीं जान था कि उसने जो खेल सुखान्त समझकर खेलना आरम्भ किया था, ६ दुःखान्त होजावेगा। जिसके आदिमें सुख था, मध्यमें सीमासे बाह सुख था, उसका अन्त ऐसे घोर दुःखके साथ कैसे हुआ ! आह ! घमण खिलाड़ी समझता है कि दूसरोंको अपनी लीला दिखाता हूं, कि परदेके पीछे एक औरही लीलामयकी लीला होरही है, यह उसे खबर नर्ह __ इस बार बम्बईमें उतरकर, माई लार्ड ! आपने जो जो इरादे जाहि किये थे, जरा देखिये तो उनमेंसे कौन-कौन पूरे हुए। आपने कहा १ कि यहांसे जाते समय भारतवर्पको ऐसा कर जाऊंगा कि मेरे बाद आने वाले बड़ेलाटोंको वर्षों तक कुछ करना न पड़ेगा, वह कितनेही वा सुखकी नींद साते रहेंगे। किन्तु बात उल्टी हुई। आपको स्वयं इ बार बेचैनी उठानी पड़ी है और इस देशमें जैमी अशान्ति आप फैल चले हैं, उसके मिटानेमें आपके पदपर आनेवालोंको न जाने कबतक नीं और भूख हराम करनी पड़ेगी। इस बार आपने अपना बिस्तर ग राख पर रखा है और भारतवासियोंको गर्म तवे पर पानीकी बून्दोंव भांति नचाया है। आप स्वयं भी सुखी न हो सके और यहांकी प्रजावं सुखी न होने दिया, इसका लोगोंके चित्त पर बड़ाही दुःस्व है। ____विचारिये तो क्या शान आपकी इस देशमें थी और अब क्या है गई। कितने ऊंचे होकर आप कितने नीचे गिरे। अलिफललाके अल हदीनने चिराग रगड़कर और अबुलहमनने बगदादके खलीफाकी गई पर आँख खोलकर वह शान न देखी, जो दिल्लीदरबारमें आपने देखी आपकी और आपकी लेडीकी कुरसी सोनेकी थी और आपके प्रभु महा राजके छोटे भाई और उनकी पत्नीकी चांदीकी । आप दहने थे वह बायें आप प्रथम थे वह दूसरे । इस देशके सब राजा रईसोंने आपको सलाम [ २१२ ]
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