विदाई सम्भाषण इस दशक निवासियोंका। इससे जान पड़ता है कि आपके और यहांक निवासियोंके बीचमें कोई तीसरी शक्ति और भी है ? जिमपर यहांवालों- का तो क्या आपका भी काबू नहीं है। बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देव- कर आज हृदयमें बड़ा दुःख है। माई लार्ड ! आपके दूसरी बार इस दशमें आनेसे भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वह यही चाहते थे कि आप फिर न आवं । पर आप आये और उससे यहांक लोग बहुत- ही दुःग्वित हुए। वह दिन रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान यहाँसे पधार। पर अहो ! आज आपक जानेपर हर्षकी जगह विपाद होता है ! इसीसे जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पदक होता है। बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और कोमल होता है। बैरभाव छूटकर शान्त- रसका आविभाव उस समय होता है। माई लार्डका देश दबनेका इस दीन भङ्गड़ ब्राह्मणको कभी इस जन्म- में सौभाग्य नहीं हुआ। इससे नहीं जानता कि वहां बिछडनेक समय लोगोंका फ्या भाव होता है। पर इस दशक पशु-पक्षियोंको भी बिछ- डनेक समय उदास दग्या है। एक वार शिवशम्भुके दो गाय थीं। उनमें एक अधिक बलवाली थी। वह कभी-कभी अपने सींगोंकी टक्करसे दूसरी कमजोर गायको गिरा देती थी। एक दिन वह टक्कर मारनेवाली गाय पुरोहितको दे दी गई। देखा कि दुर्बल गाय उसके चले जानेसे प्रसन्न नहीं हुई, वरंच उस दिन वह भूखी खड़ी रही, चारा छुआ तक नहीं । माई लाड ! जिस देशके पशुओं- की बिछड़ते समय यह दशा होती है, वहांक मनुष्योंकी कैसी दशा हो सकती है, इसका अन्दाजा लगाना कठिन नहीं है। आगे भी इस दशमें जो प्रधान शासक आये अन्तमें उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परम्पराकी चालसे कुछ अलग नहीं [ २११ ]
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