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गुप्त-निबन्धावली
चिट्ठे और खत
 

एक समय है । लोग उसे जान सकते हैं । माई लार्डके मुखचन्द्र के उदयके लिये कोई समय भी नियत नहीं। अच्छा, जिस प्रकार इस देशके निवासी माई लार्डका चन्द्रानन देखनेको टकटकी लगाये रहते हैं, या जैसे शिवशम्भु शर्माके जीमें अपने देशके माई लार्डसे होली खेलनेकी आई इस प्रकार कभी माई लार्डको भी इस देशके लोगोंकी सुध आती होगी ? क्या कभी श्रीमानका जी होता होगा कि अपनी प्रजामें जिसके दण्ड-मुण्डके विधाता होकर आये हैं किसी एक आदमीसे मिल-कर उसके मनकी बात पूछ या कुछ आमोद-प्रमोदकी बात करके उसके मनको टटोल ? माई लार्डको ड्यूटीका ध्यान दिलाना सूर्यको दोपक दिखाना है। वह स्वयं श्रीमुखसे कह चुके हैं कि ड्य टीमें बंधा हुआ मैं इस देशमें फिर आया। यह देश मुझे बहुतही प्यारा है। इससे ड्यूटी और प्यारकी बात श्रीमानके कथनसेही तय हो जाती है। उसमे किसी प्रकारको हुन्जत उठानेकी जरूरत नहीं। तथापि यह प्रश्न आपसे आप जोमें उठता है कि इस देशकी प्रजासे प्रजाके माई लार्डका निकट होना और प्रजाके लोगोंकी बात जानना भी उस ड्य टीकी सीमा तक

पहुंचता है या नहीं ? यदि पहुंचता है तो क्या श्रीमान बता सकते हैं कि अपने छः सालके लम्बे शासनमें इस देशकी प्रजाको क्या जाना और उससे क्या सम्बन्ध उत्पन्न किया ? जो पहरेदार सिरपर फेटा बांधे हाथ-में सङ्गीनदार बन्दूक लिये काठके पुतलोंकी भांति गवर्नमेण्ट हौसके द्वार पर दण्डायमान रहते हैं, या छायाकी मूर्तिकी भांति जरा इधर उधर हिलते जुलते दिखाई देते हैं, कभी उनको भूले भटके आपने पूछा है कि कैसी गुजरती है ? किसी काले प्यादे चपरासी या खानसामा आदिसे कभी आपने पूछा कि कैसे रहते हो? तुम्हारे देशकी क्या चाल-ढाल है ? तुम्हारे देशके लोग हमारे राज्यको कैसा समझते हैं ? क्या इन नीचे दरजेके नौकर-चाकरोंको कभी माई लाडके श्रीमुखसे निकले हुए

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