पीछे मत फेंकिये अंग्रेज़ी प्रतापके आगे कोई उंगुली उठानेवाला नहीं है। इस देशम एक महाप्रतापी गजाके प्रतापका वर्णन इस प्रकार किया जाता था कि इन्द्र उसके यहां जल भरता था, पवन उसके यहाँ चक्की चलाता था, चाँद सूरज उसके यहाँ रोशनी करते थे, इत्यादि। पर अंग्रेजी प्रताप उससे भी बढ़ गया है। समुद्र अंग्रेजी राज्यका मल्लाह है, पहाड़ोंकी उपत्यकाएं बैठनेके लिये कुसी मूढ़े । बिजली कलं चलानेवाली दासी और हजारों मील ग्वबर लेकर उड़नेवाली दृती, इत्यादि इत्यादि । __आश्चर्य है माई लार्ड ! एक सौ सालमें अंग्रेजी राज्य और अंग्रेजी प्रातापकी तो इतनी उन्नति हो पर उसी प्रतापी बृटिश राज्यके अधीन रहकर भारत अपनी रही सही हैसियत भी खो दे ! इस अपार उन्नतिके समयमें आप जैसे शासकके जीमें भारतवासियोंको आगे बढ़ानेकी जगह पीछे धकेलनेकी इच्छा उत्पन्न हो ! उनका हौसला बढ़ानेकी जगह उनकी हिम्मत तोड़नेमें आप अपनी बुद्धिका अपव्यय कर! जिस जातिसे पुरानी कोई जाति इस धराधाम पर मौजूद नहीं, जो हजार सालसे अधिककी घोर पराधीनता सहकर भी लुम नहीं हुई, जीती है, जिसकी पुरानी सभ्यता और विद्याकी आलोचना करके विद्वान् और बुद्धिमान लोग आज भी मुग्ध होते हैं जिसने सदियों इस पृथिवीपर अखण्ड-शासन करके सभ्यताऔर मनुष्यत्व- का प्रचार किया, वह जाति क्या पीछे हटाने और धूलमें मिला देनेके योग्य है ? आप जैसे उच्च श्रेणीके विद्वान्के जीमें यह बात कैसे समाई कि भारतवासी बहुत-से काम करनेके योग्य नहीं और उनको आपके सजातीयही कर सकते हैं ? आप परीक्षाकरके देखिये कि भारतवासी सचमुच उन ऊँचेसे ऊँचे कामोंको कर सकते हैं या नहीं, जिनको आपके सजातीय कर सकते हैं। श्रममें, बुद्धिमें, विद्यामें, काममें, वक्तृतामें. सहिष्णुतामें, किसी बातमें इस देशके निवासी संसारमें किसी जातिके
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