पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२१

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा चमत्कृत हो रहती है ! एक घासका तिनका हाथमें लीजिये और उसकी भूत एवं वर्तमान दशाका विचार कर चलिये तो जो-जो बात उस तुच्छ तिनकेपर बीती हैं, उनका ठीक-ठीक वृत्तान्त तो आप जानही नहीं सकते, पर तो भी इतना अवश्य सोच सकते हैं, कि एक दिन उसकी हरीतिमा (सब्जी) किसी मैदानकी शोभाका कारण रही होगी! कितने बड़े-बड़े रूप-गुण-बुद्धि-विद्यादि विशिष्ट उसके देखनेको आते होंगे, कितने ही क्षुद्रकीटों एवं महान व्यक्तियोंने उसपर विहार किया होगा, कितने ही क्षुधित पशु उसके खाजानेको लालायित रहे होंगे, अथवा उसे देखके न जाने कौन डर गया होगा कि इसे शीघ्र खोदो, नहीं तो वर्षा होनेपर घर कमजोर कर देगा, सुखसे बैठना कठिन पड़ेगा। इसके अतिरिक्त न जाने कैसी मन्द प्रवर वायु, कैसी अपघोर वृष्टि, कैसे कोमल कठोर चरण-प्रहारका सामना करता-करता आज इस दशाको पहुंचा है। कल न जाने किसकी आँखोंमें खटके, न जाने किस ठौरके जल व पवनमें नाचे, न जाने किस अग्निमें जलके भम्म हो इत्यादि । जब तुच्छ वस्तुओंका चरित्र ऐसे-ऐसे भारी विचार उत्पन्न कराता है, तो यह तो एक मनुष्यपर बीती हुई बात हैं। सारग्राही लोग इन बातोंसे सैकड़ों भली बुरी बात निकालके सैकड़ों लोगोंको चतुर बना मकते हैं ! सच पूछो तो पदार्थ विद्या, जिसके कारण बड़े-बड़े विद्वान् जन्मभर दुसरे कामांसे रहित होके केवल विचार करने व ग्रन्थ लिखने में संलग्न रहते हैं, जिसके कारण मर जानेपर भी हजारों वर्षतक हजारों बुद्धिमान उनकी महिमा करते हैं, उस विद्याका मूल बालकोंके और पागलोंके विचार हैं। हरी हरी डालमें लाल-लाल पीले-पीले फूल कहाँसे आये ? पीला और नीला मिलके हरा क्यों बन जाता है ? इत्यादि प्रश्नोंका ठीक-ठीक उत्तर सोचके निकालनाही पदार्थ-विद्या है। फिर मनुष्य कहाँ जन्मा, क्या-क्या किया, क्या-क्या देखा, किस-किससे कैसा कैसा