गुप्त-निबन्धावली चिट्टे और खत कर्तव्य पालन करेंगे। साथ ही इस समय इस अधेड़ भङ्गड़ ब्राह्मणको अपनी भांग बूटीकी फिकर करनेके लिये आज्ञा दीजिये। (भारतमित्र १७ दिसम्बर सन १९०४ ई.) पीछे मत फेंकिय (४) भाई लार्ड ! सौ साल पूरे होनेमें अभी कई महीनोंकी कसर है। उस समय ईष्ट इण्डिया कम्पनीने लार्ड कार्नवालिसको दूसरी बार इस देशका गवनेर-जनरल बनाकर भेजा था। तबसे अब तक आपहीको भारत- वर्षका फिरसे शासक बनकर आनेका अवसर मिला है । सौ वर्ष पहलेके उस समयकी ओर एक बार दृष्टि कीजिये। तबमें और अबमें कितना अन्तर हो गया है, क्यासे क्या हो गया है ? जागता हुआ रङ्क अति चिन्ताका मारा सोजावे और स्वप्नमें अपनेको राजा देखे, द्वारपर हाथी झूमते देख अथवा अलिफलैलाके अबुलहसनकी भांति कोई तरल युवक प्याले पर प्याला उड़ाता घरमें बेहोश हो और जागनेपर आंख मलते- मळते अपनेको बगदादका खलीफा देखे, आलीशान सजे महलकी शोभा उसे चक्कर में डाल दे, सुन्दरी दासियोंके जेवर और कामदार वस्त्रोंकी चमक उसकी आँखोंमें चकाचौंध लगा दे तथा सुन्दर बाजों और गीतोंकी मधुरध्वनि उमके कानोंमें अमृत ढालने लगे, तब भी उसे शायद आश्चर्य न हो जितना सौ साल पहलेकी भारतमें अंगरेजी राज्यकी दशाको आजकलकी दशाके साथ मिलानेसे हो सकता है। ___ जुलाई सन १८०५ ई० में लार्ड कार्नवालिस दूसरी बार भारतके गवर्नर जनरल होकर कलकत्तेमें पधारे थे। उस समय ईष्टइण्डिया कम्पनीकी मरकारपर चारों ओरसे चिन्ताओंकी भरमार हो रही थी, [ १९२ ]
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