पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२०७

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गुप्त-निबन्धावली चिट्टे और खत है। एक बड़ा सुन्दर मेल हुआ था, अर्थात आप बड़े घमण्डी शासक हैं और यहाँकी प्रजाके लोग भी बड़े भारी घमण्डी। पर कठिनाई इसी बात की है कि दोनोंका घमण्ड दो तरहका है। आपको जिन बानाका घमण्ड है, उनपर यहाँके लोग हँस पड़ते हैं । यहाँके लोगोंको जो घमण्ड है, उसे आप समझते नहीं और शायद समझग भी नहीं। जिन आडम्बरोंको करके आप अपने मनमें बहुत प्रसन्न होते हैं या यह समझ बैठते हैं कि बड़ा कर्तव्य-पालन किया, वह इम देशकी प्रजाकी दृष्टिमें कुछ भी नहीं है। वह इतने आडम्बर देख सुन चुकी और कल्पना कर चुकी है कि और किसी आडम्बरका असर उम पर नहीं हो सकता। आप सरहदको लोहेकी दीवारसे मजबूत करते हैं। यहाँकी प्रजाने पढ़ा है कि एक राजाने पृथिवीको काबूमें करके स्वर्गमें सीढ़ी लगानी चाही थी । आप और लार्ड किचनर मिलकर जो फौलादी दीवार बनाते हैं, उससे बहुत मजबूत एक दीवार लार्ड केनिंग बना गये थे । आपने भी बम्बईकी स्पीचमें केनिंगका नाम लिया है। आज ४६ साल हो गये, वह दीवार अटल अचल खड़ी हुई है । वह स्वर्गीया महाराणीका घोपणापत्र है, जो१ नवम्बर १८५८ ई० को केनिंग महोदयने सुनाया था। वही भारतवर्षके लिये फौलादी दीवार है । वही दीवार भारतकी रक्षा करती है। उसी दीवारको भारतवासी अपना रक्षक समझते हैं। उस दीवारके होते आपके या लार्ड किचनरके कोई दीवार बनानेकी जरूरत नहीं है । उसकी आडमें आप जो चाहे जितनी मजबूत दीवारोंकी कल्पना कर सकते हैं । आडम्बरसे इस देशका शासन नहीं हो सकता। आडम्बरका आदर इस देशकी कंगाल प्रजा नहीं कर सकती। आपने अपनी समझमें बहुत- कुछ किया, पर फल यह हुआ कि विलायत जाकर वह सब अपनेही मुंहसे सुनाना पड़ा। कारण यह कि करनेसे कहीं अधिक कहनेका आपका स्वभाव है । इससे आपका करना भी कहे बिना प्रकाशित नहीं [ १९० ]