पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२०

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पं० प्रतापनारायण मिश्र स्वर्गगामी होगये। जीवनीकी बहुत अच्छी सामग्री भी पाण्डेजीके घर रह गई, जिसमें मिश्रजीका उर्दू और फारसीका दीवान भी है। मालूम नहीं, और किसीके पास उसकी नकल है या नहीं। इम समय तो वह अलभ्य होगया है। उधर बाबू रामदीनसिंहजीके स्वर्गवाससे भी बहुत-सी चीज बेपता होगई हैं ; जिनका मिलना कठिन होगया है। उनके सुयोग्य पुत्र बाबू रामरणविजयसिंहने उनमेंसे बहुतमी चीज तलाश की हैं ; पर सब कहाँ, आधी भी नहीं मिलीं। बहुत-सी ऐसी चीज थीं, जो प्रतापनारायणजीके साथ ही चली गई। यह लेग्यक उस समय उनको बहुत मुलभ समझता था, पर अब वह दुलभ ही, नहीं ; अलभ्य हैं। खैर, जो कुछ मौजूद है, उमीको लेकर प्रताप-चरित लिग्ब डालना उचित समझा गया । प्रतापनारायणजी स्वयं 'प्रताप-चरित्र'के नामसे अपनी एक जीवनी "ब्राह्मण' पत्रमें छापने लगे थे, पर उसके समाप्त करनेसे पहले आपही ममाप्त होगये। आज हम उनकी लिखी हुई वह अधूरी जीवनी 'ब्राह्मण' खण्ड ५, संख्या २, ३, और ५ से उद्धृत करदेते हैं। इससे उनके वंश आदिका अच्छा परिचय मिलता है।

प्रताप-चरित्र
----"प्रताप-चरित्र, इस नामसे निश्चय है कि पाठकगण समझ जायँगे कि प्रतापनारायणका जीवन-चरित्र है, पर साथ ही यह भी हास्य करेंगे कि जन्म-भरमें स्वाँग लाये तो कोढीका, प्रताप मिश्र न कोई विद्वान है, न धनवान, न बलवान, उसके तुच्छ-जीवन वृत्तान्तसे कौन बड़ी मनोरंजना व कौन बड़ा उपदेश निकलेगा ! हाँ, यह सच है ! पर यह भी बुद्धिमानोंको समझना चाहिये कि परमेश्वरका कोई काम व्यर्थ नहीं है। जिन पदार्थोंको साधारण दृष्टिसे लोग देखते हैं, वे भी कभी-कभी ऐसे आश्चर्य्यमय उपकार-पूर्ण जंचते हैं कि बड़े-बड़े बुद्धिमानोंकी बुद्धि

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