पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१९९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली चिट्टे और खत आपकी यादगार भी यहीं बन सकती है, यदि इन दो यादगारोंकी आपके जीमें कुछ इज्जत हो। मतलब समाप्त होगया। जो लिखना था, वह लिखा गया। अब खुलासा बात यह है कि एक बार 'शो' और ड्य टीका मुकाबिला कीजिये। 'शो' को 'शो' ही समझिये। 'शो' ड्यटी नहीं है। माई लार्ड ! आपके दिल्ली दरबारकी याद कुछ दिन बाद उतनी ही रह जावेगी जितनी शिव- शम्भु शाके सिरमें बालकपनके उस सुखस्वप्नकी है। ( "भारतमित्र” २६ नवम्बर १९०४ ई०) श्रीमानका स्वागत ( २ ) १/ अटल है, वह टल नहीं सकती। जो होनहार है, वह होकर रहती है। इसीसे फिर दो वर्षके लिये भारतके वायसराय और गवर्नर जनरल होकर लार्ड कर्जन आते हैं। बहुतसे विनोंको हटाते और बाधाओंको भगाते फिर एक बार भारतभूमिमें आपका पदार्पण होता है। इस शुभयात्राके लिये वह गत नवम्बरको सम्राट एडवर्डसे भी विदा ले चुके हैं। दर्शनमें अब अधिक बिलम्ब नहीं है। इस समय भारतवासी यह सोच रहे हैं कि आप क्यों आते हैं और आप यह जानते भी हैं कि आप क्यों आते हैं। यदि भारत- वासियोंका बश चलता तो आपको न आने देते और आपका बश चलता तो और भी कई सप्ताह पहले आ विराजते ! पर दोनों ओरकी बाग किसी औरहीके हाथमें हैं। निरे बेबश भारतवासियोंका कुछ बश नहीं है और बहुत बातों पर बश रखनेवाले लार्ड कर्जनको भी बहुत बातोंमें बेबश होना पड़ता है। इसीसे भारतवासियोंको लार्ड कर्जनका [ १८२ ]