पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१९१

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गुप्त-निबन्धावली राष्ट्रभाषा और लिपि कम अज़ कम दस तरहके हरुफ़ मिलते हैं। इनमें खरोष्टी या ब्रहमनी हरुफ़ सबसे क़दीम समझे जाते हैं। तबसे अबतक रस्मुलखतमें बहुत इनकलाब हुआ है और इस वक्त जो सब रस्मुलखत इस मुल्कमें जारी हैं, वह किसी न किसी पुराने रस्मुलखतसे तब्दील होकर मौजूदा सूरतमें आये हैं। इससे तारोखी तलाश और तज़स्सुस३९ से यह मसला हल नहीं हो सकता। यह मुशकिल आसान करनेके लिये एक बार रोमन रस्मुखत अखति- यार करनेकी सलाह हुई थी। इससे यह फायदा भी सोचा गया था कि एशिया और युरोपमें एक रस्मुलखत हो जायगा। मगर यह महज़ फिजूल बात थी। रोमनमें इस मुल्ककी आवाज़ोंके लिख देनेकी ताक़त कहां है ? उसकी इस खामी ४० को अंग्रेजी कवायददान भी मानते हैं। एकही हफ़की उसमें कई आवाज़े होती हैं और कभी कभी एकही आवाज़के लिये तीन चार हरुफ़ कई तरहके नुकते वगैरह जबतक न लगायें जाय-हमारी आवाज़ोंका अदा होना उनसे मुश्किल है। ___इससे अगर हम कोई एक रस्मुलखत चाहते हैं, तो नागरी सबसे बेहतर है। युरोपके संस्कृतदां लोगोंने तस्लीम किया है कि युरोपमें जो हरुफ़ जारी हैं उन सबसे नागरी हरुफ़ मुकम्मिल हैं। फिर देव- नागरी रम्मुलखतको छोड़कर औरकी तलाश करना खुदकशी४१ नहीं तो और क्या है ? मैं तो यहांतक कहता हूं कि हरुफ़ और तलफ्ज़ ४२ के लिये हमने हिन्दमें बड़ी मेहनत की हैं। पाणिनिका संस्कृत कवायद उसका शाहिद है। दुनियां भरमें न ऐसे हरुफ़ हैं और न तलफ्ज़ का इतना उम्दा ढंग है। हमारे यहां एक हरुफ़के लिये एकही आवाज़ है, और एक आवाज़के लिये एकही हरुफ़ ।' ३९-खोज । ४०-कमी । ४१-आत्महत्या । ४२-उच्चारण । [ १७४ ]