पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१८०

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देवनागरी अक्षर बङ्गदेशमें भी देवनागरी अक्षरोंकी आवश्यकता स्पष्ट होती है और मान- नीय जष्टिस मित्रका आगे बढ़कर यह कहना कि सारे भारतवर्षमें देव- नागरी लिपि होनी चाहिये, इस बातका और स्पष्ट प्रमाण है कि बङ्गाली सजन भी देवनागरी अक्षरोंको सबसे आवश्यक समझते हैं। ____ कुछ दिनकी बात है "प्रवासी" पत्रके सम्पादक बाबू श्रीरामानन्द चट्टोपाध्याय एम० ए० ने 'चतुर्भाषी' नामका एक पत्र निकालनेका उद्योग किया था, जिसमें हिन्दी, बङ्गला, मराठी और गुजराती चार भाषाओंके लेख होते और सब लेख देवनागरी लिपिमें छपते। दुःखकी बात है कि पीछे वह उद्योग कई कारणोंसे शिथिल होगया । हम आशा करते हैं कि उक्त महोदय फिर एकबार अपने उस मनोरथके सफल करनेकी चेष्टा करगे। यहाँ हमको केवल यही दिखाना था कि बङ्गाली विद्वानोंकी न केवल देवनागरी अक्षरोंसे सहानुभूतिही है, वरञ्च वही देवनागरी अक्षरोंके प्रचारके अगुआ कहे जा सकते हैं। क्योंकि सबसे पहले उन्होंनेहो इस बातका प्रस्ताव किया है कि देवनागरी सारे भारतवर्षके अक्षर बनें । -भारतमित्र सन् १९०५ ई० देवनागरी अक्षर यरोपमें १६ देश है। सबकी भाषा प्रायः अलग अलग है, पर अक्षर एक हैं। जिनअक्षरोंमें अंग्रेजी लिखी जाती है, उन्हीमें फरान्सीसी और जर्मन आदि भाषाएँ भी लिखी जाती हैं। रूसी, डच और इटलीकी भाषाएँ भी उन्ही अक्षरों में लिखी जाती हैं। सारांश यह कि एक रूमी भाषाको छोड़कर सारे युरोपकी भाषाएं एकही प्रकारके अक्षरों- में लिखी जाती हैं और युरोपको छोड़कर युरोपवाले जहाँ जहाँ जाकर बसते हैं, वहीं उनके यह अक्षर पहुँच जाते हैं। पर भारतवर्षके अक्षरोंकी विचित्र गति है। यहाँ भाषा एक होने पर भी अक्षरोंकी गति निरालीही रहती है। देवनागरी अक्षर भारत- [ १६३ ]