गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि अदल जो कीन्ह 'उम'की नाई -भई यहाँ सगरी दुनियाई । गऊ सिंह रंगहि एक बाटा - दोनों पानि पियें एक घाटा । नीर-छीर छानै दरबारा--दृध पानि सब करै निरारा । धम्म नियाव चले सत भाखा-- दूबर बरी एक सम राखा। सबै पिरथवी असीस जोरि जोरिकै हाथ । गंगा जमन जौलहि जल तौलहि अम्मर नाथ । मलिक मुहम्मदने पदमावत आरम्भ करनेका समय म्वयं लिखा है कि सन २७ हिजरीमें उसकी नीव पड़ी- सन नवस सत्ताइस अहे--कथा आरंभ बेन कवि कहै । सिंहलदीप पदमिनी रानी-रतनसेन चितौर गढ़ आनी । अलादीन दिल्ली सुलतानू-राघो चेतन कीन्ह वखानू । सुना साह गढ़ छका आई - हिन्दु तुर्कहि भई लराई । आदि अंतकी जस कथा अहै - लिग्वि भापा चौपाई कहै। मलिक मुहम्मदको पदमावत पढ़नेसे कितनीही बातोंका पता लगता है। एक तो यह कि हिन्दुओंकी भापामें जिस प्रकार मुसलमानी शब्द मिलने लगे थे, उसी प्रकार मुसलमानी भापामें भी हिन्दीका खूब दखल होने लगा था। केवल इतनाही नहीं, वरञ्च मुसलमान लोग बहुत अच्छी हिन्दी बोलने लगे थे और उस भापासे उनको प्रेम हो गया था। दूसरे हिन्दू कवियोंको भाषामें जिस प्रकार मुसलमानी शब्द बेपरवाईसे मिलते जाते थे, मुसलमान कवि उसी प्रकार चेष्टा करते थे कि उनकी हिन्दीमें फारसी अरवीके शब्द कुछ न आवं। मलिक मुहम्मदकी पदमावत आरम्भसे अन्त तक पढ़ जाइये, कहीं अरवी फारसी शब्दोंका पता न मिलेगा। मुसलमान लोग पहले खुदाकी, पीछे मुहम्मदकी, और पीछे अपने पोर और समयके बादशाहकी तारीफ कर लेते हैं, तब पोथी आरंभ करते हैं। मलिक मुहम्मदने भी खुदाकी तारीफ की है । १३६ ]
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