हिन्दी-भाषा कहदे। दूसरीने कहा चरखकी। तीसरी बोली ढोलकी। चौथी कहने लगी कुत्तंकी। खसरोने कहा बड़ी प्यास है, पहले पानी तो पिला दो। वह बोली पहले हमारी बात न कह दोगे तो पानी न पिलाएंगी। ग्वसरूने झट कहा- खीर पकाई जतनसे चरवा दिया जला ! आया कुत्ता ग्वा गया, तू बैठी ढोल बजा। ला पानी पिला। इस प्रकार पानी पिया। कभी-कभी ढकोसला कहता था। कहते हैं कि वह भी उसीने चलाया था। ढकोसला सुनिये- भादोंकी पक्की पीपली चू-चू पड़े कपास ! बी मेहतरानी दाल पकाओगी या नङ्गाही सो रहूं। यह ऐसा पसन्द हुआ था कि सैकड़ों ऐसेही और ढकोसले बनगये थे । कुछ दिन पहले तक पुराने आदमियोंमें इनकी चर्चा थी, पर अब बन्द है। एक और सुननेके लायक है- भंस चढ़ी बबूल पर गप गप गूलर खाय । दुम उठाके देखा तो ईदके तीन दिन । एक दो-सुखना चलाया था। वह लोगोंको बहुत भाया। न जाने खुसरुने चलाया था या यहींसे लिया था। पर इतना अवश्य है कि उसको कुछ उन्नत किया। फारसी हिन्दी दोनोंको मिलाकर भी दो-सुखने बनाये । सुनिये- मुसाफिर प्यासा क्यों ? गधा उदासा फ्यों ? लोटा न था ! जूता क्यों न पहना ? संबोसा क्यों न खाया ? तला न था। पान सड़ा क्यों ? घोड़ा अड़ा क्यों ? फेरा न था ! मुसाफिर इस लिये प्यासा रहा कि उसके पास पानी पीनेको लोटा न था। गधा उदास इस लिये कि वह लेटा न था। लोटनेसे गधा प्रसन्न [ १२७ ]
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