हिन्दी-भाषा - छन्द चलाया। शायद यही पहली गजल है, जिसमें हिन्दी सम्मिलित हुई। इसमें भाषा और फारसीको ऐसे ढङ्गसे मिलाया है कि छः मौ साल पीछे भी गजलका मजा वैसेका वैसा बना हुआ है। ___ खालिकबारी एक छोटीसी पोथी जो अब भी पुराने ढरके मकतबोंमें पढ़ाई जाती है, वह भी अमीर ग्वुसरूनेही बनाई थी। बहुत बड़ी थी, उसके कई भाग थे। अब जो पढ़ाई जाती है, वह उसमेंसे थोड़ीसी चुन- कर निकाली हुई है। उसमें ब्रजभापा और फारसीको खूब मिलाया गया है। उसमेंसे कुछ नीचे लिखते हैं- बिया बरादर, आवरे भाई । बिनशी मादर, बैठरी माई । तुरा बुगुफ्तम, मैं तुझ कहिया। कुजाबि मान्दी, तू कित रहिया । दोश, कालह रात जो गई । इमशब आज रात जो भई। इनमें हरेक चरणका पहलाअंश फारसी है, दूसरा अंश उसका हिन्दी अर्थ है। मर्द मनस जन है इस्तरी–कहत अकाल वबा है मरी। इस्म अल्लह खुदाका नांव -- गर्मा धूप साया है छांव ॥ इन फारसी शब्दोंका हिन्दी अर्थ स्पष्ट समझमें आता है। पर कहीं ऐसे हिन्दी शब्द हैं, जो अब नहीं बोले जाते हैं। जैसे- __रसूल पयम्बर जान बसीठ । यार दोस्त बोलीजा ईठ।। रसूल अरबी, पयम्बर फारसी है। हिन्दीमें इनका अर्थ है दूत । पर खुसरूके समयमें दूतको बमीठ कहते थे। इसी प्रकार यार-दोस्तका अर्थ उस समय ईठ था। आज कल यार-दोस्त सब समझते हैं, ईठको कोई- नहीं समझता। हिन्दी फारसी और अरबी शब्दोंके गड्डमड्ड कोषमें तीनों भाषाओं- का जबरदस्ती तिगड्डम किया गया है। इसीसे क्रिया कहीं फारसी है, कहीं हिन्दी और कहीं दोनो। [ १२१ ।
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