हिन्दी-भाषा ने दल पंग नरिंद इन्दु प्रहियो जिमराहां । ते गोरी दल दह्यो बार पट्टह बन दाहां । तुअ 'तेज तेग' तुअ उद्ध मन नंतो पासन मिल्लिये । चामंड राय दाहर तनय तो भुज उप्पर विल्लिये । मशाल, शेख, सुलतान, याकूब आदि अरवीके शब्द हैं। शक्कर, कमान, रुब, शाह, खानजादे कुशादा, तेग, तेज आदि फारसीके और उजबक तुर्कीका शब्द है । इनमेंसे कई एक नाम हैं, जिनका अनुवाद कुछ होही नहीं सकता। कई शब्द ऐसे हैं कि उनका अनुवाद किया जावे तो कई कई पंक्तियाँ लग जावं तो भी अर्थ स्पष्ट न हो । सुलतानको यदि चन्द कवि राजा महाराजा या देशपति लिखता तो वह अर्थ कभी सिद्ध न होता, जो सुलतान या सुरतान लिखनेसे होता है। क्योंकि सुलतान शब्दमें उसकी सुलतानीका ठाठ भी तो मौजूद है। सुलतान कहनेहीसे उसके स्वभाव, प्रकृति, न्याय, अन्याय, शक्ति, धम, आदिकी बातोंका भी साथ साथ ध्यान आ जाता है। अंग्रेजीके बहुतसे शब्द ऐसे हैं कि जो हिन्दीमें कुछ बिगड़कर मिल गये हैं। उनके बोलनेसे उनका अर्थ भली- भांति समझमें आजाता है। पर यदि उनका अनुवाद किया जावे तो समझना कठिन हो जावे । रेल, स्टेशन, लाट, कमिटी, आदि पचासों शब्द ऐसे हैं जिनका अनुवाद करना व्यथ सिर पचाना है। फारसी, अरबीके कितनेही शब्द हिन्दीमें ऐसे मिले हैं कि लोग उनको हिन्दीके शब्दोंसे भी प्यारा समझते हैं। साहब शब्दको तुलसीदासजी अपनी कवितामें बड़ेही प्रेमसे लाते हैं। __इन शब्दोंके सिवा दीवान, खलक, फरमान, हजरत, सलाम आदि शब्द चन्दकी कवितामें बहुत हैं। इतने फारसी, अरबी आदिके शब्द उसमें उलीगणां गुण वरणनां फूकट फूमाणसां झिणकहऊ रास । अस्त्री चरित गत को लहर, यं कहँ आखीरसे सबई विणास ॥२॥ [ ११७ ]
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