मौलवी मुहम्मद हुसन आजाद - - को२३ हैरतमें डाल मकता है और वही क़लम उद्देकी पहिली और मीठी लोरी लिखकर छोटे २ बच्चोंको हंसा और चुप कर मकता है। वह सम- झदार और बूढ़ोंको बाग़उम्मेद दिखलाकर लुभा मकता है और नन्हें नन्हें बच्चोंको मालीके पौदे लगाने और क्यारियोंमें पानी बहनेकी बात सुनाकर बहला सकता है । वह जिस खूबीसे एक आलादर्जेके ख़यालको कलमबन्द कर सकता है, उसी खूबीसे बहुत अदना और मामूली दर्जे- की बातको भी कर सकता है । कमिसे-हिन्द वगैरह लिवकर वह “आबे हयात' और “दरबारे अकबरी” लिग्व सकता है, और इनके लिख लेनेके बाद फिर “तालीम उल मुत्तदी”का मिलमिला लिग्वनेमें जी लगा सकता है । दोनों में उसे बराबरका लुत्फ हामिल होता है । उसकी हर शैमें उसका आजादपन मौजूद है। उट्टैकी पहिली उट्टैकी पहिली है और आवेहयात,आबे- हयात। इसी तरह फारसीकी पहिली, फारसीकी पहिली है, और सखु नदान फारस, सखुनदान फारम । मगर ज़रा गौरसे देखनेमें मालूम हो जायगा कि आजाद सबमें मौजूद है और उमी ठाठके माथ। हर बहले कलमको २ ८ यह बात हासिल नहीं है। ___आजाद जब जिस चीजको लिखता है पूरी तवजहके२५ साथ लिखता है। चाहे कोई फरमाइशी शै हो, चाहे अपनी खुशीकी। रूवाह सरि- श्ता तालीमके लिये हो ख्वाह अपने लिये । उल्माके लिये हो या तुलबाके लिये । बेगारका काम करना और टालना तो वह जानता ही नहीं । इसीसे उसकी हर शै पसन्दीदा होती है। और क़बूलेआम २६ पट्टा साथ लेकर निकलती है। इमीसे वह लासानी२७ होती है और सब पर फौक़२८ ले जाती है, वह जिस खयालको सामने लाता है उसमें मह२९ हो जाता है। ज़रा उर्दूका कायदा हाथमें लो और देखो कि चार चार २३-विद्वान । २४-लेखक । २५-यान । २६ ---सर्वस्वीकृत । १७–बेजोड़। २८-सर्वोपरि, बाजी। २९–लिप्त । [ ९९ ]
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