पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/११४

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मौलवी मुहम्मद हुसेन आज़ाद जोफसे गरये मुबद्दल बदम सर्द हुआ। बावर आया हमें पानीका हवा हो जाना ॥ इशरते कतरा है दरियामें फना हो जाना । दर्दका हदसे गुजरना है दवा हो जाना ।। ज्यों साया इस चमनमें फिरा में तमाम उम्र । शरमिन्दा पा नहीं मरावगं गयाहका।। उस वक्त यह तोतेकी तरह रट लिये थे। मानी तो बहुत दिन बाद मालूम हुए. -खैर कुछ भी हो, उर्दू की इन तीन किताबांने लड़कोंके जुज़दानों१९मेंसे करीमा, खालिक़बारी और पारहाय कुरानको बड़े अदबके साथ मख्सत कराया। हज़रत आजादने उर्दूमें एक नया तालीम-उल-मुबतदीका सिल- सिला जारी किया। उन्होंने ख द उर्दका क़ायदा लिग्वा और पहिलीसे लेकर चौथी तक उर्दूकी किताब लिखीं। यह किताव ऐसी आसान और बाकायदा हैं कि इनको पढ़नेवाले बच्चे उर्दू पढ़ना और लिखना साथ-साथ सीखते जाते हैं, और जो कुछ पढ़ते हैं उसे ख द बरख द समझ लेते हैं। अगला सबक आपही निकाल लेते हैं। उस्तादोंको बहुतही कम मेहनत पड़ती है। पहले दोसाल तक पढ़ते ही चले जाते थे, लिखना नहीं सीख सकते थे। क्योंकि जो पढ़ते थे उसे समझ बहुत कम सकते थे। इससे समझना चाहिये कि आजादने किस मारकेका काम किया। सच यह है कि यह किताब लिखकर उन्होंने उर्दू के पौदे लगाये, और उन्हें सींच कर हरा भरा किया। नहीं नहीं, बल्कि उर्दूके दररू तकी जड़ोंमें पानी १९-वस्ता। २०-नई शिक्षा शैली। [ ९७ ]