पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१०४

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मौलवी मुहम्मद हुसेन आजाद कि हमें मालूम है। टेलर साहब कैसे मारा गया ? इनका रुपया कहाँ है ? मुहम्मद बाक़रने नोट पेश किये। उनपर लिखा था कि यह नोट टेलर साहबने मौलवो मुहम्मद वाकरको बेच दिये। हडसनने वह नोट लेकर अपनी जेबमें रक्खे और सिपाहीको हुक्म दिया कि गोली मार दो। बेचारे मुहम्मद बाक़र वहीं गोलीसे मारे गये। साथ ही उनके लड़के मुहम्मद हुसेन 'आज़ाद'की तलाश हुई और इनकी गिर- फ्तारीके लिये पांच सौ रुपया इनामका इश्तहार जारी हुआ। मौलवी मुहम्मद बाक़रपर एक तो यह शुबा था कि वह टेलर साहबके क़ातिल थे, दूसरे सन १८५६ में उन्होंने 'उर्दू अख़बार' नामी एक अखबार निकाला था, जिसके वह खुद एडोटर थे। कहा जाता है कि उस अखबार में अंग्रेजोंके खिलाफ़ बहुत मज़ामीनः १ निकलते थे। ग़दरके वक्त भी वह जारी था ! इससे भी अंग्रेज़ इनसे नाराज़ थे। इसी नाराज़ीके सबब इनकी जान गई। 'उर्दू अखबार'का एक-एक नम्बर तलाश कराके अंग्रेज़ोंने जलवा दिया। मगर यह भी बहाने हैं। वह अजीब वक्त था। । उस वक्त कसूरवार इनाम पाते थे और बेकसूर मारे जाते थे। राकिम ३२ जिस कस्बाका बाशिन्दा है वह पहिले नवाब झजर- के इलाकेमें था। अपने बुज़ग.से सुना-कि नवाब झजर न बागी थे न उन्होंने अंग्रेज़ोंके साथ कोई बुराई को थी, मगर ताहम उनका इलाक़ा जब्त हआ और उनको देहलीमें चांदनीचौकके फव्वारके पास फांसी दी गई। मौलवी मुहम्मद बाक़रके साथ भी वैसाही बर्ताव हुआ। जलावतनो और नौकरी बाप मुहम्मद बाकरके मारे जाने के बाद बेटे मुहम्मद हुसेनको जान लेकर भागना पड़ा। इस वक्त इनकी उम्र २६ या २७ सालकी थी वह दक्कनकी तरफ भागे और हैदराबाद पहुँचे । एक अर्सेकी सरगरदानी के ६१-रेख। ६२-लेखक । ६३–परेशानी। [ ८७ ]