पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१०३

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा आज़ाद पैदा हुए थे। ऊपर कहा जा चुका है कि वह पुराने देहली कालिजमें फ़ारसी अरबी पढ़ते थे। कालिज मजकूरमें मज़हबी किताब, शीयोंको शीया मौलवी और सुन्नियोंको सुन्नी पढ़ाता था । शीया मौलवी- का नाम मुहम्मद जाफ़र था। इनके साथ 'आज़ाद'के वालिद मुहम्मद बाकरका तनाज़ा ६० था। इससे 'आज़ाद' को बापके हुक्मसे सुन्नी मौलवीसे पढ़ना पड़ा। एक तो 'आज़ाद'की वालिदा ईरानी थीं जो फारसी खूब जानती थीं, दूसरे इन दिनों ईरानी सौदागर घोड़े लेकर आते थे और मौलवी मुहम्मद बाक़रक यहाँ ठहरते थे। इससे आज़ाद' को फ़ारसी खूब आई। मुहम्मद बाक़र ____ उनके वालिद मौलवी मुहम्मद बाक़र कचहरीमें मुलाज़िम होनेके सिवा बड़े नामवर शख्श थे। मिस्टर एफ. टेलरने जो बादमें देहली कालिजके प्रिंसपल हुए उनसे उर्दू फारसो पढ़ी थी। साहबका इनपर बड़ा एतबार था। ग़दर हो जानेपर जब अंग्रेजोंपर मुसीबत पड़ी तो टेलर साहब भागकर मुहम्मद बाक़रके घरमें छिपे। कहते हैं साहब तीन दिन उनके घरमें रहे। चोथे दिन निकाले गये और उन्हींके कूचेमें मारे गये। जब टेलर साहब उनके मकानमें गये थे, उस वक्त उनके पास एक लाख ७५ हज़ार रुपयेकी कीमतके कम्पनीके कागज़ थे। गदरके बाद जब देहलीपर अंग्रेज़ोंका दखल हो गया, तो मुहम्मद बाक़र वह नोट और एक चिठ्ठी लेकर कमान हडसनके पास गये । उन्होंने वह चिट्ठी साहबको दी। इसमें टेलर साहबकी तरफ़से लिखा हुआ था कि मुहम्मद बाक़रने मेरो जान बचाई और मुझे अपने घरमें रक्खा। साहबने चिट्ठी पढ़कर मुहम्मद बाक़रसे पूछा कि टेलर साहब कहां हैं ? मौलवी साहबने कहो वह तो मारे गये। साहबने कहा ६०-झगड़ा। [ ८६ ]