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गुप्त धन
 

क्या करूँ। नही, जी तो यही चाहता है कि जैसे वह मुझसे बेरुखी दिखलाते हैं, उसी तरह मैं भी उनकी बात न पूछू!

यकायक एक नौकर ने ऊपर आकर कहा—बहू जी, लाहौर से यह तार आया है।

माया अन्दर ही अन्दर जल उठी। उसे ऐसा मालूम हुआ कि जैसे बड़े जोर की हरारत हो गयी हो। बरबस खयाल आया—सिवाय इसके और क्या लिखा होगा कि इस गाड़ी से न आ सकूँगा। तार दे देना कौन मुश्किल है। मै भी क्यों न तार दे दूं कि मै एक महीने के लिए मैके जा रही हूँ। नौकर से कहा—तार ले जाकर कमरे में मेज पर रख दो। मगर फिर कुछ सोचकर उसने लिफ़ाफ़ा ले लिया और खोला ही था कि काग़ज़ हाथ से छूटकर गिर पड़ा। लिखा था—मिस्टर व्यास को आज दस बजे रात किसी बदमाश ने कत्ल कर दिया।

कई महीने बीत गये। मगर खूनी का अब तक पता नही चला। खुफिया पुलिस के अनुभवी लोग उसका सुराग लगाने की फिक्र में परेशान है। खूनी को गिरफ्तार करा देनेवाले को बीस हजार रुपये इनाम दिये जाने का ऐलान कर दिया गया है। मगर कोई नतीजा नहीं।

जिस होटल मे मिस्टर व्यास ठहरे थे, उसी में एक महीने से माया ठहरी हुई है। उस कमरे से उसे प्यार-सा हो गया है। उसकी सूरत इतनी बदल गयी है कि अब उसे पहचानना मुश्किल है। मगर उसके चेहरे पर बेकसी या दर्द का पीला-पन नही क्रोव की गर्मी दिखायी पड़ती है। उसकी नशीली आँखो मे अब खून की प्यास है और प्रतिशोध की लपट। उसके शरीर का एक-एक कण प्रतिशोध की आग से जला जा रहा है। अब यही उसके जीवन का ध्येय, यही उसकी सबसे बड़ी अभिलाषा है। उसके प्रेम की सारी निधि अब यही प्रतिशोध का आवेग है। जिस पापी ने उसके जीवन का सर्वनाश कर दिया उसे अपने सामने तड़पते देखकर ही उसकी आँखे ठण्डी होंगी। खुफ़िया पुलिस भय और लोभ, जाँच और पड़ताल से काम ले रही है, मगर माया ने अपने लक्ष्य पर पहुंचने के लिए एक दूसरा ही रास्ता अपनाया है। मिस्टर व्यास को प्रेत-विद्या से लगाव था। उनकी सगति में माया ने भी कुछ आरम्भिक अभ्यास किया था। उस वक्त उसके लिए यह एक मनोरजन था। मगर अब यही उसके जीवन का सम्बल था। वह रोजाना तिलो-