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गुप्त धन
 

डालेंगी। कहें कि तूने ही चढ़ाया था। क्या करेगी देखकर? अब अंडे बडे आराम से हैं। जब बच्चे निकलेगे, तो उनको पालेंगे।

दोनों चिड़ियाँ बार-बार कार्निस पर आती थी और बगैर बैठे ही उड़ जाती थीं। केशव ने सोचा, हम लोगों के डर से नहीं बैठतीं। स्टूल उठाकर कमरे में रख आया, चौकी जहाँ की थी, वहाँ रख दी।

श्यामा ने ऑखों मे आँसू भरकर कहा—तुमने मुझे नहीं दिखाया, मैं अम्मा जी से कह दूंगी।

केशव—अम्माजी से कहेगी तो बहुत मारूँगा, कहे देता हूँ।

श्यामा—तो तुमने मुझे दिखाया क्यों नहीं?

केशव—और गिर पड़ती तो चार सर न हो जाते!

श्यामा—हो जाते, हो जाते। देख लेना मै कह दूंगी।

इतने में कोठरी का दरवाजा खुला और माँ ने धूप से आँखों को बचाते हुए कहा—तुम दोनों बाहर कब निकल आये? मैने कहा न था कि दोपहर को न निकलना? किसने किवाड़ खोला?

किवाड़ केशव ने खोला था, लेकिन श्यामा ने माँ से यह बात नही कही। उसे डर लगा कि भझ्या पिट जायेंगे। केशव दिल में काँप रहा था कि कही श्यामा कह न दे। अण्डे न दिखाये थे, इससे अब उसको श्यामा पर विश्वास न था। श्यामा सिर्फ़ मुहब्बत के मारे चुप थी या इस कसूर में हिस्सेदार होने की वजह से, इसका फैसला नहीं किया जा सकता। शायद दोनों ही बातें थीं।

मां ने दोनों को डांट-डपटकर फिर कमरे में बन्द कर दिया और आप धीरे-धीरे उन्हें पखा झलने लगी। अभी सिर्फ दो बजे थे। बाहर तेज लू चल रही थी। अब दोनों बच्चों को नीद आ गयी थी।

चार बजे यकायक श्यामा की नींद खुली। किवाड़ खुले हुए थे। वह दौड़ी हुई कार्निस के पास आयी और ऊपर की तरफ़ ताकने लगी। टोकरी का पता न था। सयोग से उसकी नज़र नीचे गयी और वह उलटे पाँव दौड़ती हुई कमरे में जाकर जोर से बोली-भइया, अण्डे तो नीचे पड़े हैं, बच्चे उड़ गये!

केशव घबराकर उठा और दौड़ा हुआ बाहर आया तो क्या देखता है कि तीनों